
एक सुर्ख शाम
डूबा नहीं सूरज अभी
पर
दीवार के पांवों तक
घिर रहा अंधेरा.
अभी-अभी
चहकी है गौरैया
घर जाएगी अब
बता रही है
पहले बारिश तो थम जाने दो
सुबह होगी
फिर आएगी
उसकी टोली...
गौरैया बारिश से नहीं डरती
वो उड़ना चाहती है
बूंदों के बीच
पर जानती है
पंख भीग जाएंगे तो नहीं उड़ पाएगी
भूल करती है गौरैया फिर भी
वो बढ़ती है घर की ओर
जो है बाज के बगल
चहको गौरैया
गिलहरी भी तुम्हारे साथ फुदकेगी
पर
बाज से बचकर
हंसो
करो कलरव
पर
थमकर.
कविता सचमुच कई मायनों में प्रभावशाली है. कई अर्थ हैं, विस्तार है...जिसकी एवज भी इक कविता बन पड़ती है. यथार्थ के धरातल पे बेहतर संदेश. बहुत खूब. शुकिया. (मेरे जीवन के निजी अध्याय के संकलन की बेहतर कविताओं में शुमार. आगे भी उम्मीद. लिखते रहिये.
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उल्टा तीर
आपके "चौराहा" पर आया, पहली बार। अच्छा लगा। आगे भी आता रहूँगा इस चौराहे पर नया कुछ जानने के लिए।
ReplyDeletebahut hi komalta ke saath isme dusra paksh ubhara gaya hai,prabhawshali
ReplyDeleteबहुत खुब.....................
ReplyDeleteचौराहे पर खडा मैं सोच रहा
किधर जाऊं मन टटोल रहा
चार राहें जहाँ आके मिलती हैं
उस चौराहे के थानेदार से मैं बोल रहा
बहुत सुंदर सजाया है चौराहे को
उसपे बैठाया चहचहाते चिडे चिडयों को
मुबारक हो थानेदार तुम्हे यह खुशहाल चौराहा
हमारा तो येही रास्ता है
रोज निकलेंगे इस चौराहे से
दिलबर का आशियाँ यहाँ से दिखता है
इतना रहम करना दिलबर के रूबरू होने पर
रोक देना उन्हें अपना रुआब दिखा कलाम सुना कर
बहुत सुंदर कविता है.
ReplyDeletetum to kamal ho chandi bhai......badhai
ReplyDeleteabhi tak kahan chhupa ke rakha tha aapne is hunar ko...!!!