Monday, February 2, 2009

लौट आओ, ताकि लौट जाए उदास शाम


आज फिर बस स्टैंड पर उतर आई उदास शाम
मूंगफली के छिलकों का ढेर किसी के पांवों तले चरमराया नहीं
पांच रुपये की 100 ग्राम जलेबियां इंतज़ार करती रहीं अपने ग्राहक का
मच्छर भिनभिनाते रहे
ताज़ा-ताज़ा पटाई गई गर्लफ्रेंड्स के साथ टाइपास ब्वायफ्रेंड एमएमएस देखते-दिखाते रहे
कुछ गे, बेरोजगार, भिखारी और घर से भगाए बूढ़े भी थे बस स्टैंड पर
और थी गहरी खीझ, दुख और प्यार
पर तुम न थे
लौट आओ, ताकि बदल जाए बस स्टैंड
वो गंदगी न दिखेगी
न आसपास का बिखरापन
मूंगफली के छिलकों का चरमराना रहमान सा संगीत लगेगा
जलेबियां छप्पन भोग-सी
गे-ब्वाय-गर्लफ्रेंड अमर प्रेमी, बेरोजगार-भिखारी और निराश्रित बूढ़े करुणा जगाएंगे
आवारा-हांफते कुत्तों को भी पुचकारने का मन करेगा
यक़ीन मानो, धूल भरे बस स्टैंड पर भी लगेगी हवा
सावन को छूकर आई युवती के स्पर्श की तरह।

17 comments:

  1. सुन्दर श्ब्द चित्र प्रस्तुत किया है।बधाई।

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  2. उम्दा. बिल्कुल नए और ताज़ा बिम्ब .बधाई

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  3. यक़ीन मानो, धूल भरे बस स्टैंड पर भी लगेगी हवा
    सावन को छूकर आई युवती के स्पर्श की तरह।

    क्या बात है। आखरी दो पंक्तिया पुरी कविता को एक पॉझिटिव्ह ऍटिट्यूड देती है। मान गये!!

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  4. बहुत अच्छी दिल को छू लेने वाली कविता
    बह्त अच्छी प्रस्तुती है जी

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  5. ऑबजर्वेशन को बहुत सुन्दरता से प्रस्तुत कर रही है आपकी कविता। बेहद चित्रात्मक ।
    बहुत अच्छी कविता है, बधाई।

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  6. Beautiful!!

    kai bar padhne ka jee chahta hai..

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  7. Samy Milate hee padhata hoo... aur bhee ..
    Bhagavaan aapake KAVITA kee (SAD)gati banaay rakhe. SHUBHAM

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  8. mast hai bhiaya kafi acche poem likhi hai

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  9. क्या कसक है आपकी कविता में। मन की बात कह दी आपने। काम करते-करते कभी-कभी मन उदास हो जाता है, तब ऐसी ही बातें मन को सांत्वना देती हैं। यह आपकी संवेदनशीलता को दिखाती है।

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  10. आम बोलचाल की भाषा का प्रयोग कर बहोत ही खुबसूरत नज़्म लिखा है आपने बहोत खूब ढेरो बधाई आपको...


    अर्श

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  11. आवारा-हांफते कुत्तों को भी पुचकारने का मन करेगा
    यक़ीन मानो, धूल भरे बस स्टैंड पर भी लगेगी हवा
    सावन को छूकर आई युवती के स्पर्श की तरह।

    bhot sunder.......!

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  12. क्या खूब भाई, दिल वाह-वाह कर रहा है
    कमेंट्स लिखने के लिए भाई लोगों ने शब्द
    ही नही छोडे हैं, क्या लिखूं .समझ में नहो आता है....
    लेकिन एक बार आप फिर से अपने पुराने चिर-परिचित अंदाज में वापस आ रहे हैं...
    आपकी कविताओं में वह जादू है जो इंसान को तारो ताजा कर देता है
    आप जो शब्दों का जाल बुनते हैं, लोग उसी में खो जाते हैं
    आख़िर में बस आपकी कविताओं को सलाम और बड़े भाई आपको प्रणाम

    आपका छोटा भाई ....
    महाबीर सेठ

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  13. चण्डी भाई!
    बोले तो हल्ला काट दिया।
    मज़ा आ गया।
    उधम तार दिया।
    मो पै गनती है गई जो जा पन्नाय खोलो ना हतौ।
    :-)
    -चिराग

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  14. नमस्कार चंडीदत्त शुक्ल जी!
    क्या लिखूं मुझे तो कुछ समझ में ही नहीं आया!
    वैसे एक बात जरुर पूछना चाहूँगा कि आप बुला किसे रहे हैं!
    दिलीप गौड़
    गांधीधाम

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  15. -- pyar ki bhavna ko naya aayaam diya hai aapne..sadhuvad .

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