Saturday, March 28, 2009

तुम ही बताओ...क्या हो गए हम

कभी गुल थे हम, चमन भी खुद / खुद हौसले की ज़ुबान थे / वही बुत बने पत्थर हुए /
तुम ही बताओ क्यों आज, अपने से लगते नहीं, जो कभी दिल के इतने क़रीब थे


तेरी दीद की है आरज़ू / बस सुस्त सी खुद से गुफ्तगू / न उम्मीद के चराग़ हैं / न मोहब्बतों के दीए जले / हम सुस्त-सुस्त से बैठे हैं / बस आह की हैं रवायतें / अब ढल गए तारे सभी / जिन्हें छूने की थीं कभी कोशिशें
यूं ही वक़्त पे हम रो रहे / जैसे दीया बन के जल रहे / जो हालात खुद पैदा किए / उन्हें दफ्न होने तक ढो रहे

यूं आह में ग़ुम हुई चाह है / भटकी जैसे ज़िंदगी की राह है / जो साथ तुम थे रोशनी थी / अब हर पल लगे जैसे स्याह है

राहे जुनून में यूं भटकन है / ये हमको कहां मालूम था / शौक-ए-मोहब्बत की चाह का / ये हस्र कहां मालूम था

12 comments:

  1. Bahut khub...!!
    नव संवत्सर २०६६ विक्रमी और नवरात्र पर्व की हार्दिक शुभकामनायें

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  2. खूबसूरत शेर सब के सब

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  3. इस रौशनी को फिर से चुरा लो
    न रहो स्याह, पलों को रंगीन बना लो

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  4. achha tha waise bhi aapki baatein kaafi gehri hoti hain naa chandi jeeeee

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  5. Aapka blog kaafi khoobsurat hai aapke man ki tarah hi..............

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  6. अब आप पत्रकार से साहित्यकार हो गएँ हैं
    आपकी रचनायें बेमिशाल हैं

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  7. kaafi crative hain aap sir jee. badhayi

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  8. उम्दा. शुक्रिया.
    जारी रहें.

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  9. lage raheye..sher dher v ho jaye to v sher hi rahta hai...

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