Monday, September 28, 2009

मैं और तू...

प्रेम नहीं है 99 साल की लीज

मैं : प्रेम का क्या होगा, जब साथ नहीं रह पाएंगे
तू : चुप कर, चूम ले बस
मैं : पर कब तक
तू : एक ये पल जीवन से बड़ा नहीं है क्या?

या तो यक़ीन, या फिर...

मैं : आज फिर तू उससे मिली
तू : हां! तूने देखा!
हां : कोई बात नहीं, मुझे तुझ पर यक़ीन है
तू : यक़ीन? फिर सवाल कैसे जन्मा?

जीवन से अलग?

मैं : मेरे लिखे डायलॉग सब बोलेंगे
तू : और कहानी का क्या होगा?
मैं : कहानी से ही तो निकलेंगे...
तू : फिर अलग से क्यों लिखने पड़ेंगे?

7 comments:

  1. हुम्म्म्म्म ...ये अंदाज भी दिलचस्प है जनाब

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  2. हिला दिया मियां....कहां से लिख लेतो हो भाई...थोड़ा उधार दो न...

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  3. बहुत ही उम्दा रचनाएं ....इन सवालों के जबाब किसी के पास हैं?..

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  4. kya baat hai andaaj me alag tarah ka painaapan aur nayapan hai ... chhoti baaton me gambhir vishay ko shabdarth kiyaa hai aapne... sabhi rachanaayen achhi lagi...

    badhaayee swikaaren

    arsh

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  5. क्या कहे मुग्ध हूँ इन क्षणिकाओं पर । बहुत सुन्दर ।

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  6. waha bhai waha jaldi aap ki lekhani par log likhne lagege

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