माफ़ कीजिएगा...अरसा हुआ, कुछ लिखे हुए। आज कुछ पंक्तियां उभरी हैं...लिखा नहीं है इन्हें...नकली लेखन जैसे करता रहा हूं, वैसा नहीं है, इसलिए ना तो लालित्य दिखेगा ना शब्द चमत्कार। हो सके, तो मान लीजिए, ये सचमुच दिल से निकली हैं...!
आंसू
तुम्हारी आंख से टपका
पलक में अटका मेरी
नहा गया रोम-रोम
जन्म-जन्म को
निवेदन
सांस भर हूक
यक़ीन भर सब्र
खाली झोली
भर डालो अब
अप्रत्याशित
तुम जीवन हो
कहा हरदम
घृणा के ज्वार तुमसे
अब सहे जाते नहीं
अहसास
हृदय-तार झनझनाते हैं
वधिक के भी
जब छू लेता है वो
कोई मासूम आंसू
अनाकांक्षा
नहीं चाहिए दिशा
न मंज़िल
तुम्हीं तुम सबकुछ
ना चाहो तो ना मानो
मैकेनिक!
सूखे आलू, जली दाल
पंक्चर साइकिल
संभालो सबकुछ
जीवन के जादूगर
एक से एक बेहतरीन क्षणिकाएँ निकल कर आई हैं, वाह!
ReplyDeletebahut hi sundar....gaagar me saagar bharne jaisa prayas hai.:)
ReplyDeleteदिल को छू गयी चार चार लाइना
ReplyDeleteबहुत ही बेहतरीन और लाजबाव रचनायें । आभार ।
ReplyDeleteबहुत खूब!!!
ReplyDeleteबेहतरीन
ReplyDeleteLage Raho
Chaar linoN mein kitna kuchh keh jaatey ho bhai.
ReplyDeleteTejendra Sharma
Katha UK - London
भई वाह!
ReplyDeleteआप जो भी कहें, मुझे तो इनमें बेहतरीन कविता के दर्शन हो रहे हैं. इतने कम शब्दों में बात कहना कोई आसान काम नहीं है. आप इसी तरह सक्रिय बने रहें, यही कामना है.
behad sundar aur masoom rachnayein hain...!!
ReplyDelete