मैली कमीज
नई-नकोर, शफ्फाक शर्ट
मल-मलकर छांट दी थीं मैल की परतें
फिर भी अच्छी नहीं लग रही ये
आज क्यों नहीं पोंछ दिए तुमने जूठे हाथ?
सिनेमा / कॉफी घर
बत्तियां बुझते ही
सुलग उठता है सफ़ेद परदा
और दूसरे ठौर
ठंडे प्याले के नीचे से सरक जाती है सफ़ेद चादर
जर्जर आडंबर
बंद करो प्रेम प्रहसन
आओ भोगें एक-दूसरे को
कहा तूने, जड़ा ज़ोरदार तमाचा
नैतिकता का बहाना खील-खील!
बहुत गहरी बात तीनों मे...यह भी जबरदस्त अभिव्यक्ति का तरीका है.
ReplyDeleteवाह क्या कहने नायाब्
ReplyDeleteसब की सब लाज़वाब....खास तौर पे पहली
ReplyDeleteसभी उम्दा रचनायें है । बहुत सुन्दर । और आपके ब्लाग का यह नया कलेवर भी बहुत अच्छा लग रहा है । आभार
ReplyDeleteवाह चंडी...तुम जो भी कहते हो दिल से कहते हो.कहना बंद मत करो कि दिल सुनना चाहता है..
ReplyDeleteगीताश्री
लाजवाब !!
ReplyDeleteवाह कमाल का लिखा है .......
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ReplyDeleteबड़ी मीठी कसक लिए हुए हैं सारी क्षणिकाएं...
ReplyDeleteसब की सब लाजवाब ।
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