मैंने दीं अश्कों से नम शामें / तुमने खिलखिलाहटों से भरी सुबहें / मैं काला हुआ, चीखता ही रहा / तुम गुलाबी रहीं, कभी ना मद्धम हुईं / नादां था, हरदम भटकता रहा / अब जो तुम...नासाज़ हो---नाराज़ हो / पछता रहा हूं/ यकीन मानो / छीजता ही जा रहा हूं.../ ढीठ हूं, सो चाहता हूं / मेरी पलकों में सिमटे आंसू पी लो / होंठों से..../ और मैं / अपने सीने में घुटी मुस्कान / टांक दूं / तुम्हारे लबों पर..
Gahara Kashmaksh hai in shabdon me...behatereen!!
ReplyDeleteअच्च्चे शब्दों का साँचे कर ये पंक्तियाँ बुनी हैं आपने
ReplyDeleteGod is just!
ReplyDeletehar naarazgi or gumgeen raat ke baad pyaar ki subah aati hai!!!
Aur sabse badi baat vishwaas hai ... khud per bhi aur khuda per bhi.
Shabdon ne jaadu bikher diya hai ...:)
गज़ब है भाई शब्दों के सामंजस्य से इतना उम्दा भाव उत्पन्न हुआ है कि मुग्ध हूं
ReplyDeleteअजय कुमार झा
मैंने दीं अश्कों से नम शामें / तुमने खिलखिलाहटों से भरी सुबहें / मैं काला हुआ, चीखता ही रहा / तुम गुलाबी रहीं, कभी ना मद्धम हुईं ....
ReplyDeleteक्या बात है...बड़ी ईमानदारी से लिख गए इस बार तो...और बहुत खूबसूरती से भी...सुन्दर पंक्तियाँ..सच्चे अहसासों के लौ तले जगमगाती हुईं
chadi dutt ji manobhav shayad ek premi ke lagate hain. shabd aur shabd sanyojan aapka accha hai. aese hi likhte rahiye. baki ka jayada taareef kari jantae how gondahan ka.
ReplyDeleteबहुत खूबसूरत.
ReplyDeleteमैंने दीं अश्कों से नम शामें / तुमने खिलखिलाहटों से भरी सुबहें /
ReplyDeleteखूबसूरत ख्याल...अच्छी नज़्म....बधाई
Waah.....khoobsoorat....
ReplyDeletewah wah or bas wah...
ReplyDeleteअद्भुत !!!!!
ReplyDeleteमैंने दीं अश्कों से नम शामें / तुमने खिलखिलाहटों से भरी सुबहें /
ReplyDeleteसच सुन्दर सही में लाजवाब है यह चंद पंक्तियाँ .शुक्रिया
yun laga jaise bhavnao ko shbd mile,aur uker diya jaye panno pe...
ReplyDeletebahut khubsurat likha hai...
लाजवाब जी !!!!!!
ReplyDeletebahut hi behtareen hai...dil ki baat apne to bina lab khole hi bool di...
ReplyDeleteबेमिसाल। पर चंडीदा इन शब्दों के पीछे प्रेरणा कहां से मिली। आखिर कौन है वो जो आपको खिलखिलाती सुबहें देता है/देती है।
ReplyDeleteवाह बहुत खूब शुभकामनायें
ReplyDeleteइस रचना की हेडिंग पढ़ के ही लगा प्यार और एहसासात किस कदर लबरेज है इस रचना में ... कमाल की बात की है आपने शुक्ला जी .....
ReplyDeleteबधाई
अर्श
रेशम की कतरन सी
ReplyDeleteआपकी कविता!!!