Monday, January 25, 2010

क्लचर की जगह बांध लो...

पलकें खुलते ही / और सुर्ख हो जाते हैं / आंखों के डोरे / याद आती हैं सुबहें / तुम्हारी चाहतों के लाल रंग में रंगी हुई / पता नहीं, कहां से आती है / तुम्हारे हाथ की पकी रोटियों की सोंधी महक/ हर तरफ गूंजती है तुम्हारी हंसी की खनक / बार-बार / तुमने ही क्यों संजोकर रखीं मेरी चिल्लाहटें / मेरी किलकन के कुछ क़तरे / `क्लचर’ की जगह बांध लिए होते जूड़े के साथ / यूं भी तो, दिल अटका ही है / तुम्हारी जुल्फों की जंज़ीरों में…

4 comments:

  1. दिल तो अटका है ज़ुल्फों की जंजीरो में... बहुत ही शानदार

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  2. खालिस .............दिल का दरवाजा खटखटाती है बिना रास्ता पूछे ....

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  3. `क्लचर’ की जगह बांध लिए होते जूड़े के साथ / यूं भी तो, दिल अटका ही है / तुम्हारी जुल्फों की जंज़ीरों म

    oye hoye Gazab....behtareen khayal

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  4. बिलकुल प्यार से सराबोर पंक्तियाँ हैं ये तो...बहुत ही खुशनुमा अहसास लिए

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