काश! तुम होते
गर्म चाय से लबालब कप
हर लम्हा निकलती तुम्हारे अरमानों की भाप...
दिल होता मिठास से भरा
काश!
मैं होती
तुम्हारी आंख पर चढ़ा चश्मा..
सोचो, वो भाप बार-बार धुंधला देती तुम्हारी नज़र
काश! मैं होती रुमाल...
और तुम पोंछते उससे आंख...
हौले-से ठहर जाती पलक के पास कहीं
झुंझलाते तुम...
काश, होती जीभ मैं तुम्हारी
गोल होकर फूंक देती...आंख में...।
काश,
हम दोनों होते एक ही हाथ में
उंगलियां बनकर साथ-साथ
रहते हरदम संग,
वही
गर्म चाय से लबालब कप पकड़ते हुए
छू लेते एक-दूसरे को, सहला लेते...
काश, मैं होती तेज़ हवा,
उड़ाती अपने संग धूल
बंद हो जाती सबकी नज़र, पल भर को ही सही
जब तुम छूते मुझे
कोई देख भी ना पाता...
purkashish kavita...shandar
ReplyDeleteबहुत सुंदर और उत्तम भाव लिए हुए.... खूबसूरत रचना......
ReplyDeletebahut hi khoobsurat rachna behad bhav purn
ReplyDeleteचौराहे पर बत्ती तो लगवा लें
ReplyDeleteचण्डीभाई
या पढ़नी होगी दिल से
दिल से लिखी कविता सुंदर।
क्या बात है...बड़ी रूमानी कविता लिखी है....फगुनाहट का कमाल है है...वसंत का पूरा असर दिख रहा है...:)
ReplyDeleteक्या बात है...बड़ी रूमानी कविता लिखी है....फगुनाहट का कमाल है...वसंत का पूरा असर दिख रहा है...:)
ReplyDeleteवाह! बहुत सुन्दर और उम्दा भाव!
ReplyDeleteखूबसूरत भाव लिए रूमानी कविता ...
ReplyDeleteबहुत खूबसूरत रुमानी कविता बधाई
ReplyDeleteख्वाहिशें..ख्वाहिशें... जब पूरी नहीं होती तो यूँ ही सपने बन जाती हैं.
ReplyDeleteबहुत सुंदर!
अच्छी कविता...
ReplyDeletepandit ji aapki sabhi khwaishen poori ho rahi hai...kavita jandar hai... romantik hai....
ReplyDeleteवाह भाई.. प्यार का ये भी बेहद खूबसूरत रूप है... बेहतरीन है..
ReplyDeleteहोली की ढेर सारी शुभकामनाएं
कहाँ हो ?अंगुलियाँ चूम लूँ
ReplyDeleteरूमानियत की संजीदगी से सजी खुबसूरत रचना ... आनंद आगया पढ़ कर ... बहुत खुबसूरत बात कही है आपने ... आभार...
ReplyDeleteअर्श
क्या कल्पना है !!!
ReplyDeleteइश्वर आपको अगले जनम में अर्धनारीश्वर बनाए.....