Monday, November 28, 2011

तुम्हें खोकर, खो दिया सब कुछ!


- चण्डीदत्त शुक्ल

एक डूबता हुआ सूरज
फिर खिल उठा
खुल गए कई बंद रास्ते
न, तुम कहां आए
आई बस ज़रा-सी याद तुम्हारी
और दिन थम गया
रात रुक गई
सांस चलने लगी तेज़, और तेज़
एक तुम्हारी याद इतनी कारसाज़
तो सोचो मुकम्मल तुम,
हो कितनी अपूर्व
अतुलनीय प्रेम की बेमिसाल तस्वीर पूरी की पूरी तुम
इसीलिए इतनी दृढ़?
जानती हो,
ईश का अभिशाप मिला है मुझको
न हो सकूंगा खुश निमिश भर को
इसीलिए,
नहीं आती हो मेरे जीवन में तुम क्षण भर के लिए भी...
है न?
दुनिया के सारे वसंत अपने रुमाल में बांधकर
ओझल हो तुम वसंतलता
मेरे संसार से,
तभी तो,
हर दिन सूरज निकलता है,
रात ढलती है
सांझ होती है
उम्र के कैलेंडर में एक-एक दिन जुड़ता जाता है
और
साथ-साथ घटती जाती है ज़िंदगी मेरी
पर
स्थगित रहता है सावन...
झुंझलाते होंठों और खिन्न आंखों के साथ
बस, कभी-कभार
बहुत दम लगाकर आ जाती है तुम्हारी याद
यह एहसास दिलाने के लिए
हां, मैंने सब कुछ खो दिया है
तुम्हें खोकर
मेरे प्रेम!


<दिल की वीरान बस्ती का एक उदास टापू...>

6 comments:

  1. हर दिन सूरज निकलता है,
    रात ढलती है
    सांझ होती है
    उम्र के कैलेंडर में एक-एक दिन जुड़ता जाता है
    और
    साथ-साथ घटती जाती है ज़िंदगी मेरी
    पर
    स्थगित रहता है सावन...behtareen kahun yaa nihshabd rahun

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  2. प्रेम का खोना सचमुच दुखदाई है।

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  3. झुंझलाते होंठों और खिन्न आंखों के साथ
    बस, कभी-कभार
    बहुत दम लगाकर आ जाती है तुम्हारी याद
    यह एहसास दिलाने के लिए
    हां, मैंने सब कुछ खो दिया है
    तुम्हें खोकर
    बहुत खूब कहा है आपने ।

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  4. अंतर्स्पर्शी भाव विहल करती रचना...
    सादर...

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  5. shabd rahit hoon panktiyan pad kar.....

    man ko chhute bhav....

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