
तुम्हें देखने की कोशिश में
अक्सर धुंधला जाती है नज़र
आंसुओं में घुल-ढक जाती रोशनी
बायलोजिकल उपज हैं ये
सच है साथी
कैसे हो सकता है आंसुओं का महिमामंडन
रक्त, कफ और वीर्य की तरह
ये तो पैथालोजी लैब के लिए टेस्ट का सामान भर हैं
किसी कसक से इनका क्या वास्ता
भरोसे दरक जाएं, तो भरोसा नहीं होते
जो चटख जाए, वो प्यार ही कहां भला
याद है वो बारिश, जब एक छतरी फेंककर तुम मुस्कराई थीं
और पानी में सन गए थे हम-तुम
तब भी तो रो दिया था मैं
पर आंसुओं और महिमामंडन का रिश्ता इससे तो नहीं बनता
बुनता रहूं भले ही मैं इनका संबंध
तुम तो जानती हो ना
ये छलने की नई तरकीब भर है, है ना...
4 comments:
तुम्हें देखने की कोशिश में
अक्सर धुंधला जाती है नज़र
आंसुओं में घुल-ढक जाती रोशनी
बायलोजिकल उपज हैं ये
सच है साथी
कैसे हो सकता है आंसुओं का महिमामंडन
रक्त, कफ और वीर्य की तरह
कहुत सुंदर और sadhe हुए शब्दों का chayan है जो अच्छा लगा
बहुत उम्दा अभिव्यक्ति!!
याद है वो बारिश, जब एक छतरी फेंककर तुम मुस्कराई थीं
और पानी में सन गए थे हम-तुम
तब भी तो रो दिया था मैं
खूबसूरत अभिव्यक्ति है
haquikkat hai
याद है वो बारिश, जब एक छतरी फेंककर तुम मुस्कराई थीं
और पानी में सन गए थे हम-तुम
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