कौन-सी थी वो ज़ुबान / जो तुम्हारे कंधे उचकाते ही / बन जाती थी / मेरी भाषा / अब क्यों नहीं खुलती / होंठों की सिलाई / कितने ही रटे गए ग्रंथ / नहीं उचार पाते / सिर्फ तीन शब्द

मुसाफ़िर...

Tuesday, January 26, 2010

ठंडी हथेली में मुस्कान की गुनगुनाहट

कल
बहुत अरसे बाद
जब राह में धुंध 
गहरी हो रही थी
और-और ज़्यादा
तब यकायक
गाढ़ी रात
तब्दील हो गई 
ताज़ा सुबह में 

तुम फुसफुसाईं
पागल हो?
समझते ही नहीं
मैं तुमसे प्यार करती हूं

ठहर गई सांस
थर्रा गया मैं
पूरा का पूरा
अपने वज़ूद के साथ...
तुम्हारी घृणा
तेज़ाब बन
तैरने लगी
जख़्मों के निशानों तक
सिमटने लगा मैं
अहसास-ए-क़मतरी के साथ

तभी फिर हिले तुम्हारे लब
क्या सोचते हो?
मुझे चूम नहीं सकते अब 
और आंखें देखने लगीं
वो सुबहें
खुली क़िताबों के पन्नों पर उभरी इबारतें
और यकायक दरख्त से उतर आईं गिलहरियां
चुगने लगीं हाथ से मूंगफलियां
उंगलियों के पोर
हो गए गीले
चुंबन की नमी से

सिर झटककर कहा मैंने
घृणा के बाज़ार में
अपेक्षा और उपेक्षा के सौदे
और नहीं, अब और नहीं...

हाथ बढ़ाकर समेट ली
अपनी ठंडी हथेली में
मैंने तुम्हारी मुस्कान की गुनगुनाहट
वादा रहा
अब कभी कालिख ना दूंगा
उठी अगर सीने में
तो निकालूंगा
और लगा दूंगा
तुम्हारी पलकों के नीचे
काजल की तरह

तुम भी रख लो
मुझे अपने गुलदस्ते में
मुरझाने ना दो
चाहत के ये फूल

17 comments:

shikha varshney said...

marmsparshi panktiyan hain ..bahut sunder.

निर्मला कपिला said...

दिल को छूने वाली रचना गणत्न्त्र दिवस की शुभकामनायें

sushant jha said...

Dil chura liya aapne...kahan se late hain aisi nayab cheejein?

सुनीता शानू said...

वाह! वाह! वाह! इसके सिवा और क्या कहा जाये समझ नही आता...खूबसूरत रचना।

rashmi ravija said...

पता नहीं आप कैसे इतनी संवेदनशीलता और ईमानदारी से इतना गहरा लिख लेते हैं.....आज तक कभी नहीं लिखा..निशब्द....पर आज आपकी रचना ने सचमुच निशब्द कर दिया.

Udan Tashtari said...

तुम भी रख लो
मुझे अपने गुलदस्ते में
मुरझाने ना दो
चाहत के ये फूल


-दिल को छू गई भाई यह रचना..वाह!

@ngel ~ said...

gilhariyon ka haathon se mungfali khana bhi pyaar ka sandesh deta hua sa lagta hai...
style n bhaav dono hi sunder hain :)

REETESH SRIVASTAVA said...

ka bhaiya! kuchh gadbad hai, aaj kal bahut sringar ras fhoot raha hai.vaise is kadkadati thand mein pyar ka tadaka swadyukt hai.likhte rahiye.kam se kam thand ko bhi ahsas to hona hi chahiye ki chandi dutt ji thand ka poora maja le rahe hain.

"अर्श" said...

क्या खूब नजाकत और नफासत वाली बात की है शुक्ला जी ... प्यार को क्या खूब जगह
बक्शी है आपने ... संवेदनशीलता की मिशाल तक पहुंचा दिया आपने
बधाई


अर्श

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

सुन्दर रचना!

नया वर्ष स्वागत करता है , पहन नया परिधान ।
सारे जग से न्यारा अपना , है गणतंत्र महान ॥

गणतन्त्र-दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ!

vandana gupta said...

bahut hi gahan abhivyakti.

संजय भास्‍कर said...

विजय विश्व तिरंगा प्यारा ,झंडा ऊँचा रहे हमारा
गणतंत्र दिवस की शुभ कामनाए*

आकाँक्षा गर्ग ( Akanksha Garg ) said...

बढ़िया प्रस्तुति.. बधाई !
प्रकाम्या

vandana gupta said...

प्रेम को कैसे सहेजा जाये दिखला दिया………शानदार्।

Onkar said...

Komal si masoom si panktiyan

S.M.HABIB (Sanjay Mishra 'Habib') said...

दिल को छोटी रचना...
सादर...

Mamta Bajpai said...

तुम भी रख लो
मुझे अपने गुलदस्ते में
मुरझाने ना दो
चाहत के ये फूल
सुन्दर रचना आभार