कौन-सी थी वो ज़ुबान / जो तुम्हारे कंधे उचकाते ही / बन जाती थी / मेरी भाषा / अब क्यों नहीं खुलती / होंठों की सिलाई / कितने ही रटे गए ग्रंथ / नहीं उचार पाते / सिर्फ तीन शब्द

मुसाफ़िर...

Sunday, July 26, 2009

योग्यता से पाई ऊंचाई



तेज-तर्रार, लेकिन नम्र हैं। खासे पढ़े-लिखे और नई पीढ़ी को बढ़ावा देने वाले, यानी महिंद्रा एंड महिंद्रा के मैनेजिंग डायरेक्टर आनंद महिंद्रा। हार्वर्ड सरीखे प्रतिष्ठित विश्वविद्यालय से उन्होंने बिजनेस मैनेजमेंट और आ‌र्ट्स की डिग्री भी हासिल की है।
1981 में आनंद भारत लौटे। सबसे पहले उन्होंने महिंद्रा युगिन स्टील कंपनी लिमिटेड के साथ बतौर एक्जिक्यूटिव असिस्टेंट काम शुरू किया। बाद में वे कंपनी के फाइनेंस डायरेक्टर बने और 1989 में उन्हें प्रेसिडेंट व डिप्टी मैनेजिंग डायरेक्टर की जिम्मेदारी सौंपी गई। 4 अप्रैल, 1991 को आनंद महिंद्रा एंड महिंद्रा के डिप्टी मैनेजिंग डायरेक्टर की कुर्सी पर बैठे। कुछ ही साल में कंपनी के शीर्ष पद पर पहुंचे आनंद की शुरुआत को पहले गंभीरता से नहीं लिया गया। आनंद की कोशिशों को ज्यादातर लोगों ने एक व्यावसायिक परिवार के लाडले की शुरुआत का नाम दिया।
हालांकि म बेशक आनंद महिंद्रा सफल उद्योगपति हैं, लेकिन इससे अलग उनकी चर्चा युवा प्रतिभाओं को अवसर प्रदान करने वाले काबिल और संवेदनशील इंसान के रूप में भी होती है..
मुंबई के महिंद्रा टॉवर में तैयार की गई योजनाओं को सफलता के साथ लागू कर आनंद ने साबित कर दिया कि उनकी नियुक्ति महज पारिवारिक उपहार नहीं है, बल्कि वे बिजनेस के जानकार व उपयुक्त व्यक्ति हैं। 1994 में आनंद के अंकल केशब के कंपनी के कामकाज से किनारा कर लेने के बाद आनंद पर दोहरी जिम्मेदारी आ गई-योजनाएं बनाने और उन्हें लागू करने के साथ-साथ सफलता के साथ कामकाज चलाने की। उन्होंने एक साक्षात्कार में बताया है, पहले हम जीप और ट्रैक्टर की बिक्री भर करते थे, लेकिन 1994 के बाद हमने योजना बनाई कि कारोबार को और विस्तार देना होगा।
2002 में आनंद ने देश की अत्याधुनिक स्पो‌र्ट्स वेहिकल स्कॉर्पियो लॉन्च की और उसे लोगों के बीच प्रिय बनाने का काम भी किया।
इसके अलावा कोटक महिंद्रा फाइनेंस व हार्वर्ड बिजनेस स्कूल एसोसिएशन ऑफ इंडिया की स्थापना समेत आनंद ने कई ऐसे काम किए, जिन्होंने देश की अर्थव्यवस्था को और मजबूत बना दिया। गौर करने वाली बात यह है कि आर्थिक विषयों पर आनंद लगातार लिखते-पढ़ते भी रहते हैं। नेशनल स्टॉक एक्सचेंज के निदेशक के रूप में उनकी सक्रियता भी लोगों को अब तक याद है। वे कन्फेडरेशन ऑफ इंडियन इंडस्ट्री (सीआईआई) के प्रेसिडेंट बने और एग्रिकल्चर काउंसिल के कामकाज पर खास ध्यान देकर खेतीबाड़ी की दुनिया को स्टैब्लिश करने का अभियान छेड़ दिया। इसी तरह केसी महिंद्रा एजुकेशनल ट्रस्ट के ट्रस्टी और महिंद्रा युनाइटेड व‌र्ल्ड कॉलेज ऑफ इंडिया के गवर्नर के रूप में आनंद कुछ रिपो‌र्ट्स पढ़कर ही संतुष्ट नहीं हो जाते, बल्कि नई प्रतिभाओं को उचित मंच देने की कोशिश में लगातार जुटे रहते हैं। खुशी की बात यह है कि आनंद अब भी न थके हैं, न रुके हैं, बल्कि चेन्नई में एक रिअॅल इस्टेट प्रोजेक्ट को अंतिम रूप देने में जुटे हैं। पिछले दिनों एक मीडिया प्रतिनिधि से बातचीत में उन्होंने माना कि टीवी कैमरे उनकी गर्दन के पास रहते हैं और उनसे बचने के लिए वे किसी स्टंटमैन की तरह इधर-उधर भागते रहते हैं, लेकिन यह कोशिश मीडिया से अरुचि के कारण नहीं है। सच तो यह है कि स्टार बनने से ज्यादा जरूरी उनके लिए समय पर अपना काम पूरा करना है।
रिअॅल इस्टेट, हॉस्पिटैलिटी मैनेजमेंट, ट्रैक्टर-जीप निर्माण, फाइनेंस, समाजसेवा..जाने कितने ही अलग-अलग क्षेत्रों में कीर्तिमान स्थापित करने वाले आनंद ने बहुत कम समय में साबित कर दिया है कि उनकी कामयाबी कोई घरेलू उपहार नहीं है, बल्कि यह सफलता उन्होंने काबिलियत के दम पर हासिल की है।


दैनिक जागरण के जोश सप्लिमेंट में प्रकाशित

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