कौन-सी थी वो ज़ुबान / जो तुम्हारे कंधे उचकाते ही / बन जाती थी / मेरी भाषा / अब क्यों नहीं खुलती / होंठों की सिलाई / कितने ही रटे गए ग्रंथ / नहीं उचार पाते / सिर्फ तीन शब्द

मुसाफ़िर...

Monday, November 15, 2010

बदलती दुनिया की `आभासी’ खिड़कियां

एक अंकुर जब ज़मीन से उभरता है, तो अनगिनत परतें तय करके दरख़्त बनता है, यूं ही ज़िंदगी की पहली सांस से जवानी और फिर फ़ना होने तक कितने ही क़दम आगे बढ़ाने होते हैं। जीवन के इस सफ़र में बहुतेरे रिश्ते साथ जुड़ते हैं, अहसास बुलंद होते हैं और तब कहीं कोई मुकम्मल होता है। जीवन यात्रा के कई पड़ाव हैं। कहीं हम ठहरते हैं, कहीं तेज़ रफ़्तार से आगे बढ़ जाते हैं...लेकिन दोस्तों का, संबंधों का तानाबाना हरदम साथ रहता है। दोस्त, सिर्फ वही नहीं, जो आंखों के सामने, चाय की प्याली के साथ, चिट्ठियों और फ़ोन पर संग-संग होते हैं, कई बार उनसे भी ग़ज़ब की अटूट रिश्तेदारी होती है, जो सिर्फ अहसास में होते हैं, आभास में मिलते हैं। ऐसी ही दोस्तियां बुनी जाती हैं आभासी दुनिया, यानी  virtual world में।
जैसे ज़िंदगी गतिशील है, ठीक वैसे ही दुनिया भी लगातार बदल रही है। हम लगातार प्रगति की बातें करते हैं, उसके लिए कोशिशें करते हैं और सजग रहते हैं। कई बार हमें अपने हमख़यालों के बारे में पता चलता है, तो ज्यादातर बार इसी फ़िक्र में दिन बीतता है—हमारे जैसी सोच सबकी क्यों नहीं होती? लेकिन ऐसा नहीं है। दुनिया को बेहतर बदलाव देने की कोशिश में बहुत-से लोग जुटे हैं। आभासी दुनिया में ऐसे ही कई ठिकाने हैं, जहां झांककर हम जान सकते हैं कि संसार कितना गतिशील है। तो आइए, सबसे पहले चलें दुधवा जंगल की ओर। उत्तर प्रदेश के लखीमपुर खीरी के पास है दुधवा अभयारण्य। 
महात्मा गांधी ने कहा था, `किसी राष्ट्र की महानता और नैतिक प्रगति को इस बात से मापा जाता है कि वह अपने यहां जानवरों से किस तरह का सलूक करता है।‘ पेशे से शिक्षक कृष्ण कुमार मिश्र ने ये बात गंभीरता से समझी और जनवरी, 2010 से शुरू कर दिया एक अनूठा पोर्टल—http://www.dudhwalive.com/

हालांकि कृष्ण कुमार का ये पोर्टल सिर्फ दुधवा जंगल की बातें नहीं करता। मिश्र बताते हैं, `दुधवा लाइव के सृजन का पहला मकसद है, हमारे आस-पास के वन्य-जीवों व पर्यावरण के बारे में दुनिया को बताना।‘ वो अपने मकसद में कामयाब भी रहे हैं। मिश्र की मानें, तो उनके पोर्टल पर आवाज़ उठाने के बाद पक्षी सरंक्षण की मुहिम शुरू हुई। उनका इरादा है कि दुधवा लाइव पर संरक्षित वनों और वन्य जीवों के अलावा गांव-जंवार के पशु-पक्षियों और खेत-खलिहानों की बातें भी की जाएं।
...लेकिन जंगल का मतलब जानवर ही तो नहीं हैं? वनों की एक दुनिया ऐसी भी है, जिसके बारे में बातें करते समय हम सिहर उठते हैं और जंगल को नाम देते हैं—बीहड़। दस्यु गिरोहों की कथाओं में कितनी सच्चाई है और उनकी अपनी ज़िंदगी-जद्दोज़हद कैसी है, इसकी दिलचस्प कहानी बयां करता है एक ब्लॉग—बीहड़ (http://beehad.blogspot.com/) । औरैया, उप्र के रहने वाले योगेश जादौन ने कई अख़बारों समेत इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में भी काम किया, लेकिन मन में हमेशा ये इच्छा हिलोर मारती रही कि बीहड़ संसार से सबको परिचित कराया जाए, तो ये ब्लॉग बना डाला।
हरे-भरे जंगलों के साथ पानी की चिंता करने वाले पोर्टल और ब्लॉग भी बहुतेरे हैं। इनमें अहम नाम है—http://hindi.indiawaterportal.org/। कृष्ण कुमार की तरह इस पोर्टल के संचालकों को भी महात्मा गांधी का एक कथन बहुत प्रभावित करता है—‘यदि हम कार्य करने में केवल यह सोचकर सकुचाते हैं कि हमारे सारे सपने पूरे नहीं हो सकते अथवा इसलिए कि कोई हमारा साथ नहीं दे रहा, तो इससे केवल हमारी कोशिशों में बाधा ही पड़ती है।‘ 
यकीनन, हिंदी में मौलिक वैचारिक काम करना काफी कठिन है, क्योंकि ज्यादातर संदर्भ अंग्रेज़ी में ही उपलब्ध हैं, लेकिन 2005 से लेकर अब तक अंग्रेज़ी में लंबे समय तक वाटर पोर्टल चलाने के साथ राष्ट्रीय ज्ञान आयोग ने एनजीओ अर्घ्यम् के साथ हिंदी में पानी पर पोर्टल शुरू किया। कहने की बात नहीं कि इस पोर्टल की मदद से आम लोग भी जल संरक्षण से लेकर पानी के महत्व की हर बात अपनी भाषा में समझ पाने में सक्षम हुए हैं। हिंदी पोर्टल का कामधाम मुख्यतौर पर वाटर कम्युनिटी इंडिया की चेयर पर्सन श्रीमती मीनाक्षी अरोड़ा और सिराज केसर ही संभालते हैं। पानी को लेकर जागरूकता फैलाने वाली कुछ और वेबसाइट्स में http://www.waterresourcesgroup.com/irm/content/home.html, www waterresourcesgroup com, http://www.carewater.org/, http://www.himalayanwater.org/ का नाम शामिल है।
पानी, जंगल, ज़मीन, खेताबीड़ी को लेकर अलग-अलग भाषाओं में चलाए जा रहे पोर्टल और ब्लॉग अच्छा काम कर रहे हैं। इनमें http://www.waterandfood.org/, http://savemaaganga.blogspot.com/, http://www.waterkeeper.org/, http://www.prakriti-india.org/Home, http://www.bhartiyapaksha.com/, http://www.blueplanetproject.net/, खास हैं।
वैसे, एक बात बताइए? क्या आप जानते हैं कि देश के 12 करोड़ किसान परिवारों में से 60 फीसदी के पास बैंक खाते तक नहीं हैं, जबकि आयात के नाम पर विदेशी किसानों को मालामाल किया जा रहा है? जानकारी चौंकाने वाली है...और ऐसी ही बहुतेरी सूचनाएं देता है वरिष्ठ पत्रकार अरविंद कुमार सिंह का ब्लॉग-- http://khet-khalihan.blogspot.com/।
अब बात करें एक रोचक अभियान छेड़ने वाले पोर्टल की। ये है www.fluoridealert.org। यूं तो, अमेरिका में चूहे मारने के लिए फ्लोराइड का इस्तेमाल किया जाता था, लेकिन उसका परिणाम ये हुआ कि देश का सत्तर फीसदी भूजल फ्लोराइड की वज़ह से दूषित हो चुका है। फ़्लोराइड एक्शन नेटवर्क ने फ्लोराइड प्रदूषण से बचाव के लिए बहुतेरे कार्यक्रम शुरू किए और साथ ही इससे संबंधित पोर्टल भी शुरू किया। इस आभासी मंच पर फ्लोराइड प्रदूषण,  ज़हरीले असर को लेकर बहुत-सी सूचनाएं, आंकड़े और तथ्य मुहैया कराए गए हैं। 
एक तरफ फ्लोराइड का ज़हर और दूसरी ओर विस्थापन की तक़लीफ़...दर्द कैसा भी हो, एक जैसी ही तड़प पैदा करता है। http://matujan.blogspot.com/ ऐसी ही तक़लीफ़ का बयान है। ये ब्लॉग उत्तराखण्ड समेत अन्य हिमालयी राज्यों के लोगों की समस्याएं बयां करने के लिए बनाया गया है। टिहरी पर बांध बनाने को लेकर नाराज़ सिरांई गांव के नौजवानों ने नवंबर, 2001 में संगठन बनाया और ज़ाहिर तौर पर अपनी आवाज़ सारी दुनिया तक पहुंचाने के लिए ब्लॉग भी तैयार कर लिया। वैसे, अब इस ब्लॉग स्वर टिहरी के अलावा, भागीरथी, अलकनंदा व गंगा घाटी के अन्य बांधों को लेकर भी जनचेतना जगा रहा है...।
कुछ और ब्लॉग व पोर्टल हैं, जो नदियों की खुशी और पीर की कथा बयां करते हैं, इनमें http://www.savegangamovement.org/, http://gangajal.org.in/, http://www.neerexnora.com/index.asp, www.holyganga.org, www.navdanya.org प्रमुख हैं।
वैसे, विकास की ख़बरों तक पहुंचने के लिए http://www.im4change.org/hindi/ भी बेहतर मंच है। यहां खेतिहर संकट, गांवों के आंकड़े, बेरोजगारी, घटती आमदनी, माइग्रेशन, भोजन का अधिकार, नरेगा, सूचना और शिक्षा का अधिकार जैसे विषयों पर सार्थक बहस के साथ मिड डे मील, सार्वजनिक वितरण प्रणाली, कर्ज- आत्महत्या, नीतिगत पहल, पर्यावरण से संबंधित आंकड़े और दिलचस्प चर्चा भी पढ़ने को मिल जाती है।
आंदोलनों और चिंताओं के बीच हमें अक्सर याद आती है बिंदेश्वरी पाठक के सुलभ की। 1974 में पाठक ने बिहार में सुलभ इण्टरनेशनल शुरू किया। फ्लश शौचालयों को लोकप्रिय बनाने की उनकी ये मुहिम सफाईकर्मियों के लिए वरदान साबित हुई। इस पूरी यात्रा की झलकियां http://www.sulabhinternational.org,  www.sulabhtoiletmuseum.org, www.sulabhenvis.in जैसे लिंक्स के ज़रिए देखी जा सकती है।
कहते हैं, कुदरत के रंग हज़ार हैं, तो आभासी दुनिया कम रंग-बिरंगी कैसे हो सकती है? इसी की गवाही देता है बालसुब्रमण्यम लक्ष्मीनारायण का ब्लॉग-- http://kudaratnama.blogspot.com/। बालू नाम से मशहूर लक्ष्मीनारायण केरल के हैं, अहमदाबाद में रहते हैं और हिंदी में खूब रोचक जानकारियां मुहैया कराते हैं, मसलन—आंध्र प्रदेश के बपाटला कस्बे के बांदा आदिवासी गिद्ध जैसे शवभोजी पक्षी भी खा लेते हैं और ये भी कि असम के एक छोटे-से पहाड़ी गांव जटिंगा में हर साल अगस्त से अक्टूबर के बीच रोशनी जलाते ही दर्जनों पक्षी खिंचे चले आते हैं...। तो पतंगों को रोशनी पर मर मिटते देखा था आपने, लेकिन ऐसी किसी घटना के बारे में सुना था कभी? बेहतरी के लिए बदलाव की रोशनी जलाए हुए आगे बढ़ रहे इन पोर्टलों, ब्लॉगों (जिन्हें हिंदी में चिट्ठा कहा जाता है) के बारे में फ़िलहाल इतना ही...।
समाज, परिवेश, कुदरत और जीवन के बदलाव से जुड़े कुछ और ब्लॉग / पोर्टल
delhigreens com, paryavaran-digest blogspot, jalsangrah.org, matrisadan.wordpress com, nregawatch.blogspot.com, pragyaabhiyan.info, http://www.carewater.org/, narmadanchal.in, http://www.savegangamovement.org/, http://gangajal.org.in/


छोटी-सी बातचीत-1
कृष्ण कुमार मिश्र, मॉडरेटर, http://www.dudhwalive.com/

जंगल पर पोर्टल शुरू करने का इरादा कैसे बनाया?
- इन्टरनेट एक ऐसा माध्यम है, जो हमारी आवाज को इस ग्रह के तमाम हिस्सों में पहुंचाने की क्षमता रखता है। जंगल और जंगली जीवों पर मानवता के कथित विकास के दुष्परिणामों और उनके निवारण की वह बातें जो हाशिए के आदमी की नज़र से होती हैं, कहने की कोशिश ही है ये पोर्टल।
ये प्रयोग कितना सफल रहा है?
दुधवा लाइव का मुख्य मकसद था, अपनी जैव-विविधिता का अध्ययन, सरंक्षण व संवर्धन, जिसमें हमें काफी सफ़लता मिली है।  हमने एक और प्रयोग किया कि वर्चुवल दुनिया से "गौरैया बचाओ अभियान" जैसी गतिविधियां शुरू करें और इसमें चमत्कारिक सहयोग मिला है।
योजनाएं क्या हैं?
फ़िलहाल, दुधवा लाइव को अंग्रेज़ी भाषा में भी पेश कर दिया गया है। आगे भी बदलावों का सिलसिला जारी रहेगा।

छोटी-सी बातचीत-2
मीनाक्षी अरोड़ा, प्रमुख, वाटर कम्युनिटी इंडिया और संचालक, hindi.indiawaterportal.org

पानी पर पोर्टल की शुरुआत के पीछे क्या इरादा था?
पानी पर हिंदी में पोर्टल शुरू करने का इकलौता उद्देश्य ये था कि देश के विभिन्न भागों में पानी के विभिन्न पहलुओं पर हो रही गतिविधियों की जानकारी लोगों तक पहुंचाई जा सके। इसमें हमने "प्रश्न पूछें" जैसी सेवा शुरू की है।
कैसी चुनौतियों का सामना करना पड़ा?
हिंदी पोर्टल की शुरुआत के समय बहुत-सी चुनौतियां हमारे सामने आईं। इनमें आर्थिक, तकनीकी और भाषाई ज्ञान की समस्या प्रमुख थी। आर्थिक रूप से तो रोहिणी निलेकणी ने अर्घ्यम् की ओर से इसे संबल दिया, लेकिन तकनीक को साधने में थोड़ी दिक्कत हुई। यूनिकोड के बारे में पता चलने के बाद हमारी समस्या का समाधान हो गया। पानी-पर्यावरण पर अब तक अधिकांश सामग्री अंग्रेजी में ही उपलब्ध है जिसके कारण हमें अनुवाद का सहारा ज्यादा लेना पड़ता है, लेकिन हम अनुवाद करने के बाद भी उसको कई बार पढ़कर मौलिक हिंदी आलेख बनाने का प्रयास करते हैं।



और अब यहां सोपान स्टेप (जहां मूल रूप में ये लेख छपा) के पेजेज़ की प्रत्यक्ष झांकी



4 comments:

प्रवीण त्रिवेदी said...

प्रकृति से जुड़े चिट्ठों की यह यात्रा अच्छी रही !
बधाई !

​अवनीश सिंह चौहान / Abnish Singh Chauhan said...

मान्यवर
नमस्कार
अच्छा काम कर रहे हैं आप .
मेरे बधाई स्वीकारें

साभार
अवनीश सिंह चौहान
पूर्वाभास http://poorvabhas.blogspot.com/

वीरेंद्र सिंह said...

सर...आपका ये ग्यानबर्धक लेख बहुत पसंद आया.
इसके लिए आपको आभार.

Dinesh Mishra said...

अतिसुंदर.... बधाई !