कौन-सी थी वो ज़ुबान / जो तुम्हारे कंधे उचकाते ही / बन जाती थी / मेरी भाषा / अब क्यों नहीं खुलती / होंठों की सिलाई / कितने ही रटे गए ग्रंथ / नहीं उचार पाते / सिर्फ तीन शब्द

मुसाफ़िर...

Thursday, November 26, 2009

मुंबई हमला...थोड़ा-सा गुस्सा


कितनी मुश्किल, कितने कंटक खड़े करेगा दुश्मन
हर बाधा हम दूर करेंगे, जीतेगा ये जीवन
माटी अपनी फौलादी है, जज्बा अपना इस्पाती
मिट जाएंगे पर नहीं झुकेंगे, देश है अपनी थाती

उजड़ी कोखें, सूनी मांगें, बहनों के पसरे हाथ
करें सवाल यही वो हरदम, कब होगा इंसाफ़
नापाक पड़ोसी होश में आए, आंखें अपनी खुली हुईं

रक्षा की खातिर न्योछावर कर देंगे ये तन-मन...

7 comments:

Rajeysha said...

kavita ko kahani ki tarah kyon likha gaya hai?

@ngel ~ said...

Ojasvi kavita hai....
Maadhurya se bhari kavitayein koibhi likh deta hai... ye likhna sach mein mushkil hai.
:)

प्रेम said...

आपने सही कहा चंडीदा। आतंकवादी लाख कोशिश कर लें, पर हमारे जज्बे के सामने उनकी दाल नहीं गलेगी।

rashmi ravija said...

अच्छी कविता है,पर अन्दर से उपजी हुई नहीं,...आपकी पुरानी रचनाओं से बहुत अलग....पुरानी रचनाएं बेहतर थीं.

तीसरा कदम said...

बहुत ही अच्छा लिखा है. आतंकियों के नापाक इरादे कभी भी सफल नहीं हो सकते.

आकाँक्षा गर्ग ( Akanksha Garg ) said...

very well said :)

sargam said...

bahut badiya likha hai bas tukbandi ki kami hai