कौन-सी थी वो ज़ुबान / जो तुम्हारे कंधे उचकाते ही / बन जाती थी / मेरी भाषा / अब क्यों नहीं खुलती / होंठों की सिलाई / कितने ही रटे गए ग्रंथ / नहीं उचार पाते / सिर्फ तीन शब्द

मुसाफ़िर...

Monday, March 23, 2009

चंद लाइनें...

इस बीच चौराहा पर नहीं आया...मनःस्थिति ही कुछ ऐसी थी...हालत अब भी वही है, फिर भी बेशर्मी के साथ फेसबुक पर स्टेट्स मैसेज के रूप में कुछ लाइनें ज़रूर लिखता रहा.

वही पेश हैं...सबसे पहले वो, जो मुझे पसंद है...


फ़ाकामस्ती का आलम नहीं देखा हमने /
फिर भी मुफ़लिसी का डर सताता है /
दिल तो बंजारा है /
सुख में भी आवारगी के गीत गाता है...





1.
क़सक यूं दिल पे तारी हुई,
ज़िंदगी महज बेचारी हुई,
आंखें जिनमें पनपता था राग प्यार का,
सुरमई न रहीं, सिर्फ खारी हुईं

2.
आज तनहा हुए हम कुछ इस तरह,
जैसे दिल के सारे तार चटक गए
तुम्हें पाने की आरज़ू में
चले तो संग थे फिर भी राह भटक गए

3.
जब साथ बिन दिल रोता है और मन जलते हैं
महबूब हमारे तब कांच के टुकड़ों पर चलते हैं

4.
दिल की लगी ऐसी बढ़ी चेहरे का नूर छिन गया /
आहों में यूं उदासी बसी सांसों से चंदन छिन गया

5.
वो दिन भी क्या थ, जब कबूतर की चोंच पर टिके रहते थे प्यार के संदेश /
अब फोन पल को नहीं मिलता, तो लगता है छूट गया है देश

6.
दिन गुज़रा उनकी याद में, शाम तनहा ही रही
रात महकी साथ से, ज़िंदगी फिर बढ़ती गई
ये मोहब्बत भी क्या, इल्लत मिली हमको
दिल तो हाथ से गया ही, जान भी जाती रही

3 comments:

Girindra Nath Jha/ गिरीन्द्र नाथ झा said...

क्या बात है चंडी दा, अच्छी पोस्ट है। मुझे तो वैस सभी पंक्तियां आपकी अच्छी लगी लेकिन मरे दिल के करीब रही, ये पंक्तियां-
अब फोन पल को नहीं मिलता, तो लगता है छूट गया है देश................................

दिगम्बर नासवा said...

दिन गुज़रा उनकी याद में, शाम तनहा ही रही
रात महकी साथ से, ज़िंदगी फिर बढ़ती गई
ये मोहब्बत भी क्या, इल्लत मिली हमको
दिल तो हाथ से गया ही, जान भी जाती रही

चंडीदत्त जी
आपकी हर लिखी बात अलग अंदाज की है मगर खूबसूरत है

Anonymous said...

naa jaane kyun hota hai ye zindagi ke saath achanak ye man kisi ke jaane ke baad kare fir uski yaad chhoti chhoti si baat ....naa jaane kyun?????bahut badhiyaaan