कौन-सी थी वो ज़ुबान / जो तुम्हारे कंधे उचकाते ही / बन जाती थी / मेरी भाषा / अब क्यों नहीं खुलती / होंठों की सिलाई / कितने ही रटे गए ग्रंथ / नहीं उचार पाते / सिर्फ तीन शब्द

मुसाफ़िर...

Thursday, November 26, 2009

मुंबई हमला...थोड़ा-सा गुस्सा


कितनी मुश्किल, कितने कंटक खड़े करेगा दुश्मन
हर बाधा हम दूर करेंगे, जीतेगा ये जीवन
माटी अपनी फौलादी है, जज्बा अपना इस्पाती
मिट जाएंगे पर नहीं झुकेंगे, देश है अपनी थाती

उजड़ी कोखें, सूनी मांगें, बहनों के पसरे हाथ
करें सवाल यही वो हरदम, कब होगा इंसाफ़
नापाक पड़ोसी होश में आए, आंखें अपनी खुली हुईं

रक्षा की खातिर न्योछावर कर देंगे ये तन-मन...

Tuesday, November 10, 2009

चित्रों ने खोली ज़ुबान, मर्दों के बारे में क्‍या सोचती हैं औरतें




मोहल्ला लाइव http://mohallalive.com/2009/11/09/painting-exhibition-in-jaipur से साभार

कौन-सा पुरुष होगा, जो न जानना चाहे कि स्त्रियां उसके बारे में क्या सोचती हैं? ये पता करने का मौक़ा जयपुर में मिला, तो मैं भी छह घंटे सफ़र कर दिल्ली से वहां पहुंच ही गया। मौक़ा था, टूम 10 संस्था की ओर से सात महिला कलाकारों की संयुक्त प्रदर्शनी के आयोजन का। और विषय, द मेल!                                                 nidhi
                                                                                                                                  
मर्द, मरदूद, साथी, प्रेमी, पति, पिता, भाई और शोषक… पुरुष के कितने ही चेहरे देखे हैं स्त्रियों ने। कौन-सी कलाकार के मन में पुरुष की कौन-सी शक्ल बसी है, ये देखने की (परखने की नहीं… क्योंकि उतनी अक्ल मुझमें नहीं है!) लालसा ही वहां तक खींच ले गयी।

जयपुरवालों का बड़ा कल्चरल सेंटर है, जवाहर कला केंद्र। हमेशा की तरह अंदर जाते ही नज़र आये कॉफी हाउस में बैठे कुछ कहते, कुछ सुनते, कुछ खाते-पीते लोग।

सुकृति आर्ट गैलरी में कलाकारों की कृतियां डिस्प्ले की गयी थीं। उदघाटन की रस्म भंवरी देवी ने अदा की। पर ये रस्म अदायगी नहीं थी। पुरुष को समझने की कोशिश करते चित्रों की मुंहदिखाई की रस्म भंवरी से बेहतर कौन निभाता। वैसे भी, उन्होंने पुरुष की सत्ता को जिस क़दर महसूस किया है, शायद ही किसी और ने किया हो पर अफ़सोस… अगले दिन मीडिया ने उनका परिचय कुछ यूं दिया, फ़िल्म बवंडर से चर्चा में आयीं भंवरी…!

इस मौक़े पर चर्चित संस्कृतिकर्मी हरीश करमचंदानी ने 15 साल पुरानी कविता सुनाई, मशाल उसके हाथ में। भंवरी देवी के संघर्ष की शब्द-यात्रा।

एक्जिबिशन में शामिल कलाकारों में से सरन दिल्ली की हैं। वनस्थली से उन्होंने फाइन आटर्स की पढ़ाई की है। उनका पुरुष फूल और कैक्टस के बीच नज़र आता है। कांटे और खुशबू के साथ आदमी का चेहरा। वैसे, लगता है सरन के लिए पुरुष साथी ही है। रोमन शैली का ये मर्द शरीर से तो मज़बूत है पर उसका चेहरा कमनीय है, जैसे चित्रकार बता रही हों… वो बाहर से कठोर है और अंदर से कोमल।

सुनीता एक्टिविस्ट हैं… स्त्री विमर्श के व्यावहारिक और ज़रूरी पक्ष की लड़ाई लड़ती रही हैं। वो राजस्थान की ही हैं। सुनीता ने स्केचेज़ बनाये हैं। उनकी कृतियों में पुरुष की तस्वीर अर्धनारीश्वर जैसी है… शायद आदमी के अंदर एक औरत तलाशने की कोशिश। लगता है, वो पुरुष को सहयोगी और हिस्सेदार समझती हैं।

संतोष मित्तल के चित्र ख़ूबसूरत हैं, फ़िगरेटिव हैं, इसलिए जल्दी ही समझ में आ जाते हैं। कलरफुल हैं, पर चौंकाते हैं। उनके ड्रीम मैन हैं, अमिताभ बच्चन। इस बात पर बहस हो सकती है कि किसी स्त्री के लिए अमिताभ पसंदीदा या प्रभावित करने वाले पुरुष क्यों नहीं हो सकते! पर सवाल थोड़ा अलग है। संतोष के चित्रों में तो फ़िल्मी अमिताभ की देह भाषा प्रमुख है, उनका अंदाज़ चित्रित किया गया है। जवानी से अधेड़ और फिर बूढ़े होते अमिताभ। ख़ैर, पसंद अपनी-अपनी!

एक और कलाकार हैं सीता। वो राजस्थान के ही सीमांत ज़िले श्रीगंगानगर की हैं। कलाकारी की कोई फॉर्मल एजुकेशन नहीं ली। पति भी कलाकार हैं, तो घर में रंगों से दोस्ती का मौक़ा अच्छा मिला होगा। उनकी एक पेंटिंग में साधारण कपड़े पहने पुरुष दिखता है। पर बात यहीं खत्म नहीं होती। वो दस सिर वाला पुरुष है… क्या रावण! एक और कृति में सीता ने उलटे मटके पर पुरुष की ऐसी शक्ल उकेरी है, जैसे किसान खेतों में पक्षियों को डराने के लिए बज़ूका बनाते हैं। तो क्या इसे विद्रोह और नाराज़गी की अभिव्यक्ति मानें सीता?

मंजू हनुमानगढ़ की हैं। पिछले 20 साल से बच्चों को पढ़ाती-लिखाती रही हैं। यानी पेशे से शिक्षिका हैं। उनकी कृतियों में प्रतीकात्मकता असरदार तरीक़े से मौजूद है। तरह-तरह की मूंछों के बीच नाचता घाघरा और दहलीज़ पर रखे स्त्री के क़दम… ऐसी पेंटिंग्स बताती हैं… अब और क़ैद मंज़ूर नहीं।

ज्योति व्यास शिलॉन्ग में पढ़ी-लिखी हैं, पर रहने वाली जोधपुर की हैं। प्रदर्शनी में उनके छायाचित्र डिस्प्ले किये गये हैं। चूड़ियां, गाढ़े अंधेरे के बीच जलता दीया और बंद दरवाज़े के सामने इकट्ठे तोते। ये एक बैलेंसिग एप्रोच है पर थोड़ी खीझ के साथ।

निधि इन सबमें सबसे कम उम्र कलाकार हैं। फ़िल्में बनाती हैं, स्कल्पचर और पेंटिंग्स भी। ख़ूबसूरत कविताएं लिखती हैं और ब्लॉगर भी हैं(संयोग से इनकी पेंटिंग्स ही मोहल्ला लाइव के लिए भेजने को मुझे मिल सकी हैं)। निधि पुरुष के उलझाव बयां करती हैं और इस दौरान उसके हिंसक होते जाने की प्रक्रिया भी। समाज के डर से सच स्वीकार करने की ज़िम्मेदारी नहीं स्वीकार करने वाले पुरुष का चेहरा अब सबके सामने है। जहां चेहरा नहीं, वहां उसके तेवर बताती देह।

एक चित्र में अख़बार को रजाई की तरह इस्तेमाल कर उसमें छिपे हुए पुरुष के पैर बाहर हैं… जैसे कह रहे हों, मैंने बनावट की बुनावट में खुद को छिपा रखा है, फिर भी चाहता हूं, मेरे पैर छुओ, मेरी बंदिनी बनो!




एक्रिलिक में बनाये गये नीले बैकग्राउंड वाले चित्र में एक आवरण-हीन पुरुष की पीठ है। उसमें तमाम आंखें हैं और लाल रंग से उकेरी गयीं कुछ मछलियां। ये अपनी ज़िम्मेदारियों से भागते पुरुष की चित्त-वृत्ति का पुनर्पाठ ही तो है!



उनके एक चित्र में देह का आकार है… उसकी ही भाषा है। कटि से दिल तक जाती हुई रेखा… मध्य में एक मछली… और हर तरफ़ गाढ़ा काला रंग। ये एकल स्वामित्व की व्याख्या है। स्त्री-देह पर काबिज़ होने, उसे हाई-वे की तरह इस्तेमाल करने की मंशा का पर्दाफ़ाश। निधि के पांच चित्र यहां डिस्प्ले किये गये हैं। प्रदर्शनी अभी 10 नवंबर तक चलेगी।

पुनश्च 1 – ये कोई रंग-समीक्षा नहीं है। जो देखा, समझ में आया। लिख दिया।
पुनश्च 2 – आनंदित होने, संतुष्ट हो जाने और बेचैन हो जाने के भी तमाम कारण इन चित्रों ने बताये हैं। इन पर सोचना ही पड़ेगा।

[[और अंत में... एक बड़े अधिकारी की पत्नी ने कहा, भंवरी देवी को प्रदर्शनी की शुरुआत करने के लिए क्यों बुलाया गया? मुझसे कहतीं, मैं किसी भी सेलिब्रिटी को बुला देती! अफ़सोस कि ऐसा कहने वाली खुद को कलाकार भी बताती हैं। (कानों सुनी)]]

(चंडीदत्त शुक्‍ल। गोंडा, यूपी में जन्म। दिल्ली में निवास। अखबारों-मैगजीन में चाकरी करने, दूरदर्शन-रेडियो और मंच पर तरह-तरह का काम करने के बाद इन दिनों फोकस टीवी के प्रोग्रामिंग सेक्शन में स्क्रिप्टिंग। दूरदर्शन-नेशनल के साप्ताहिक कार्यक्रम कला परिक्रमा की लंबे अरसे तक स्क्रिप्टिंग की है। अब इनसे chandiduttshukla@gmail.com पर संपर्क कर सकते हैं।)