प्रेम नहीं है 99 साल की लीज
मैं : प्रेम का क्या होगा, जब साथ नहीं रह पाएंगे
तू : चुप कर, चूम ले बस
मैं : पर कब तक
तू : एक ये पल जीवन से बड़ा नहीं है क्या?
या तो यक़ीन, या फिर...
मैं : आज फिर तू उससे मिली
तू : हां! तूने देखा!
हां : कोई बात नहीं, मुझे तुझ पर यक़ीन है
तू : यक़ीन? फिर सवाल कैसे जन्मा?
जीवन से अलग?
मैं : मेरे लिखे डायलॉग सब बोलेंगे
तू : और कहानी का क्या होगा?
मैं : कहानी से ही तो निकलेंगे...
तू : फिर अलग से क्यों लिखने पड़ेंगे?
7 comments:
हुम्म्म्म्म ...ये अंदाज भी दिलचस्प है जनाब
हिला दिया मियां....कहां से लिख लेतो हो भाई...थोड़ा उधार दो न...
बहुत ही उम्दा रचनाएं ....इन सवालों के जबाब किसी के पास हैं?..
kya baat hai andaaj me alag tarah ka painaapan aur nayapan hai ... chhoti baaton me gambhir vishay ko shabdarth kiyaa hai aapne... sabhi rachanaayen achhi lagi...
badhaayee swikaaren
arsh
क्या कहे मुग्ध हूँ इन क्षणिकाओं पर । बहुत सुन्दर ।
waha bhai waha jaldi aap ki lekhani par log likhne lagege
behtreen.........
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