कौन-सी थी वो ज़ुबान / जो तुम्हारे कंधे उचकाते ही / बन जाती थी / मेरी भाषा / अब क्यों नहीं खुलती / होंठों की सिलाई / कितने ही रटे गए ग्रंथ / नहीं उचार पाते / सिर्फ तीन शब्द

मुसाफ़िर...

Saturday, October 23, 2010

मायावती जी, सुन लीजिए एक मां का दर्द!

देश की राष्ट्रपति, लोक सभाध्यक्ष, केंद्र में सत्तासीन दल की मुखिया, दिल्ली की सीएम और उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री...ये सब महिलाएं हैं। ताक़तवर पदों पर आसीन हैं। दावा है—ये दौर महिला सशक्तीकरण का है पर सच क्या है? जानना चाहेंगे, वो दहला देगा। उत्तम प्रदेश कहे जाने वाले उत्तर प्रदेश में दलित, महिलाएं और मीडिया सब निशाने पर हैं। छह महीने में आधा दर्जन पत्रकार मारे जा चुके। आजमगढ़ में सत्रह साल की दलित युवती से सामूहिक दुष्कर्म हुआ और चंद रोज पहले की घटना भी जान लीजिए।
यूपी के गाजीपुर ज़िले में एक साधारण-से गांव की तीन भोली-भाली निर्दोष औरतें सारी रात नंदगंज थाने में बिठाए रखी गईं। इनमें से एक बीमार थी। बैठ नहीं पाई, तो ज़मीन पर लेट गई। एक अपाहिज थी, वो बैसाखी के सहारे घंटों खड़ी रही। अट्ठारह घंटे तक पुलिसिया सितम झेलने के बाद इन महिलाओं को घर जाने की इजाज़त मिली।
ये सबकुछ विजयादशमी के ऐन पहले हुआ। देश भर में रावण जल रहा था। असत्य पर सत्य की जीत का पर्व मनाया जा रहा था, लेकिन खुशी से सराबोर लोग नहीं जानते थे कि रावण नहीं मरा था। यूपी में वो अट्टहास कर रहा था। अपने अभिमान में चूर ठहाके लगा रहा था।
ये है उत्तर प्रदेश की मासूम महिलाओं का हाल। उस यूपी में, जहां दलितों की बेटी, स्त्रियों की शुभचिंतक मायावती का राज चलता है। वही मायावती, जो वरुण गांधी को जेल भेजने के बाद मेनका गांधी के कटाक्ष—माया मां होतीं तो दर्द समझतीं, पर उबल पड़ती हैं। कह देती हैं—मां का दर्द समझने के लिए मां होना ज़रूरी नहीं है, लेकिन उनके अफ़सर बेगुनाह औरतों पर जुल्म ढाते हैं।
अब जान लीजिए इन औरतों का ज़ुर्म भी। बस इतना कि इनका ताल्लुक एक ऐसे व्यक्ति से था, जो आपराधिक मामले में आरोपी है। आरोपी सरेंडर कर दे, ये दबाव बनाने के लिए पुलिस बेगुनाह महिलाओं को थाने उठा लाई थी।
चंद रोज पहले घटा ये मामला गुम हो जाता। वर्दीवाले गुंडों के रूप में कु-ख्यात पुलिस का कारनामा कोई जान भी ना पाता, लेकिन संयोग ही था कि ये महिलाएं चर्चित मीडिया साइट bhadas4media.com के मॉडरेटर यशवंत सिंह के परिवार की थीं, इसलिए इसकी चर्चा देश भर में हुई। इनमें यशवंत की मां यमुना सिंह,  चाची रीता सिंह और चचेरे भाई की पत्नी सीमा सिंह शामिल थीं।
इस घटना के बाद अयोध्या प्रेस क्लब, जन जागरण मीडिया मंच समेत बहुतेरे मीडिया संगठन सामने आए। उन्होंने दोषियों के ख़िलाफ़ कड़ी कार्रवाई की मांग की। पूरे देश में विचारोत्तेजक अभियान छेड़ा गया, लेकिन गाजीपुर पुलिस चुपचाप रही। वहां के पुलिस अधीक्षक ने कहा--हमें इस बारे में कुछ नहीं मालूम। ये सफ़ेद झूठ था और इसके जवाब में यशवंत ने वो सभी ई-मेल सार्वजनिक कीं, जो उन्होंने तमाम पुलिस अधिकारियों को भेजी थीं। एसपी ही नहीं, बनारस रेंज के डीआईजी को भी फोन कर जानकारी दी गई थी। शोर बढ़ा, तब कहीं गाजीपुर के एएसपी (सिटी) की अगुआई में पुलिस नंदगंज थाने के अलीपुर बनगांवा गांव पहुंची। वहां पीड़ित महिलाओं का बयान दर्ज किया गया।
ये घटना मायाराज की खोखली हकीकत से परदा उठाती है और ये भी बताती है कि यूपी की पुलिस अपने अफ़सरों से भी नहीं डरती। यशवंत ने जब आईजी को फोन किया, तो उन्होंने महिलाओं को छोड़ने का निर्देश दे दिया, लेकिन स्थानीय पुलिस ने आला अफ़सर की बात तक नहीं सुनी। मामले में इतना ही हुआ है कि आई जी ने जांच रिपोर्ट मंगाई है और वो अब वो इस पर विचार करेंगे। पहले पुलिस क्यों चुप थी, तो वज़ह ये—चुनावों के चलते कोई कार्रवाई नहीं हो सकती।
... तो क्या बस बेगुनाह महिलाओं को उठाया भर जा सकता था? उनके स्वाभिमान से खिलवाड़ ही किया जा सकता था? ऐसे में ताज्जुब क्या कि पीड़ित पत्रकार यशवंत उबल पड़ते हैं—ये मेरी निजी लड़ाई है, लेकिन इससे कहीं ज्यादा स्त्री के सम्मान के लिए संघर्ष है।
चर्चित संपादक हरिवंश साफतौर पर कहते हैं कि सत्ता आज भी पुराने युग के बर्बर कानूनों को इस्तेमाल कर रही है और ये दुर्भाग्यपूर्ण है। तकरीबन दस दिन गुज़र चुके हैं, लेकिन यूपी की पुलिस स्त्रियों के इस अपमान पर तकरीबन ख़ामोश है। मायावती जी क्या आप सुन रही हैं एक मां का दर्द?

4 comments:

निर्मला कपिला said...

माया की माया मे जो हो वही कम है। बहुत दुखद और शर्मनाक घटना है। आभार।

वीरेंद्र सिंह said...

सर जी .....अगर मायावतीजी की अपनी माँ होती तो शायद उन्हें ये समझ आता.
चूँकि ये एक पत्रकार की माँ थी ..इसलिए शायद ही वो इस माँ का दर्द समझने की कोशिश करें .
हमारे देश में ये कोई नई बात नहीं है. ये तो यशवंत जी थे जिन्होंने पुलिस के
इस अत्याचार के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाई . आम आदमी तो बस मन ही मन पुलिस को
कोस कर शांत हो जाता है .
आपने इस पर अपने ब्लॉग में चर्चा की ..इसके लिए आपको आभार .

Naveen said...

मायावती के नाम में ही माया जुड़ी हुई है। वे मदांध है माया के गुरुर में। हालांकि बहनजी खुद भी जुल्मों के कई चरण झेलकर यहां तक पहुंची हैं लेकिन अब वे अपना भूत भूल चुकी। उनके ऊपर सिर्फ और सिर्फ माया का भूत सवार है।

नवीन कुमार त्रिपाठी

जगदीश्‍वर चतुर्वेदी said...

सुंदर लिखा है