कौन-सी थी वो ज़ुबान / जो तुम्हारे कंधे उचकाते ही / बन जाती थी / मेरी भाषा / अब क्यों नहीं खुलती / होंठों की सिलाई / कितने ही रटे गए ग्रंथ / नहीं उचार पाते / सिर्फ तीन शब्द

मुसाफ़िर...

Sunday, July 27, 2008

बचपन, बारिश और चाय


गरम-गरम सांसों की सरसराहट ने कहा,हाथ में गरम-गरम चाय की एक जोड़ी प्याली उठाओ. चलो, बस चलो, चल दो, लोग सुनें कदमों की आहट. एक जो तुम्हारे पैर हों, दूसरे तुम्हारे साथी के. हम चले, तभी दो बूंदें आसमान से उतरीं, गिरने लगीं तो अधखुली आंखों ने,पलकों ने, गैर-अघाई बाहों ने उन्हें लोक लिया...धीरे-धीरे बारिश बढ़ी, भीगने लगे हम, मन में आग दहकती हुई, पानी पड़ा और उठा धुआं. यादों का ऐसा धुआं, जिनमें कुछ सीलने, सुलगने की महक शामिल है...याद आया बचपन, धुंधलाया पर नए-नकोर बुशर्ट जैसा...चेहरे पर छा गया एक रुमाल, यादों की मीठी महक से महकता हुआ...
बहुत दिन बाद जुर्राबें उतार, पार्क की हरी घास पर नंगे पैर टहलने का दिल किया...दफ्तर का वक्त था, दस्तूर भी न था,फिर भी जूते फेंके टेबल के नीचे, मैं और वो...नहीं तुम नहीं, वो भी नहीं...एक और साथी...पार्क की ओर चल दिए...हम चाय की प्याली लिए पार्क की एक बेंच की दीवाल पर ऊपर उठंगे हुए...साथी से कहा, घास पर चलें पर वो नहीं माना...उसके कपड़े गंदे हो जाते...मैं नीचे आ गया...वहां ढेर सारा पानी था, गंदगी भी रही होगी पर नहीं...घास महक रही थी...पानी भी मुझे अपनी ओर खींच रहा था...मैं एक बड़ा--कमाऊ और जिम्मेदार इंसान नहीं, छोटा सा बच्चा बन गया था...बारिश थम गई है...मैं फिर जुर्राबें पहनकर दफ्तर में आ गया हूं...तुम भी साथ नहीं हो, बस कंप्यूटर है और आठ घंटे की नौकरी...बारिश फिर से आएगी न...मैं भीगूंगा और तुम भी...

7 comments:

ऋतेश पाठक said...

bahut achi post hai chandidutt g..

maaf kijiega thoda busy tha
islie chat box toot gayee...

aur kaise hain..

जगदीश त्रिपाठी said...

बारिश में थे भीगते,गाते सावन गीत
प्यारा-प्यारा गांव था,प्यारे-प्यारे मीत
प्यारे-प्यारे मीत,याद बचपन की आई
छूटे अम्मा-बाप,हुए हम शहरी भाई

Anonymous said...

sir ji aapke choraahe to mujhe is choraahe per khada ker diya ki kya comment kiya jaaye... but osim....

Unknown said...

चौराहा के लिए बधाई। आपकी आशावादी कविता पढ़कर मन प्रफुल्लित हो गया। मेरी कामना है कि इसी प्रकार बारिश में भीगते-भीगते एक दिन आपका भी घरोंदा बन जाएगा।
बारिश में भीगते-भीगते
जिसने भी बनाए आने घरोंदे
देखता हूं,
बारिश से सुरक्षित हैं
उन्‍हीं के घरोंदे।

Rajeev Kumar said...

sir Kya Blog banaya hai. Aasa karten hain ki aap hum logon ko kuch denge.

nidhi said...

kooch-a-gul
kooch-a-sba
kooch-a-sumbul
kooch-a-gazal
tere chauraahe pe aake mile
tere chauraahe se jo laute koi
to phir inhi raaho se jaake mile

मुकेश कुमार सिन्हा said...

wah:)