साथी
कहां हैं वो चित्र
जो बुनने थे तुम्हें
भरने थे जिन रेखाओं में रंग
देखता हूं वो उंगलियों से छनकर काग़ज़ों तक उतर नहीं पाईं
मन के काले गड्ढों में गहरी हो रही और कालिख
क्या यही थी रेखाओं की नियति
उलझनों में तब्दील हो जाना
कहां हैं वो चित्र
जो बुनने थे तुम्हें
भरने थे जिन रेखाओं में रंग
देखता हूं वो उंगलियों से छनकर काग़ज़ों तक उतर नहीं पाईं
मन के काले गड्ढों में गहरी हो रही और कालिख
क्या यही थी रेखाओं की नियति
उलझनों में तब्दील हो जाना
अलमारी पर तह किया रखा रह गया है कैनवॉस
फ्रेम की लकड़ियों पर लग रही दीमक
साथी
मन को तो नहीं लगा घुन
बचाकर रखना ज्वार
उफान मारे तो संजोना
उलटने, छलकने न देना
आंसू बनकर
पता है ना
तुम्हारे रंग छंद बनकर उतरेंगे कविताओं में
शब्द बन बुनेंगे कहानियां
उम्मीद फिर जन्म लेगी
मारेगी किलकारियां
खूब ख़ूबसूरत होगा कल
बस, संभालो अपने आपको
छोटी तुनकमिज़ाजी से कहीं बड़ा है प्यार
फ्रेम की लकड़ियों पर लग रही दीमक
साथी
मन को तो नहीं लगा घुन
बचाकर रखना ज्वार
उफान मारे तो संजोना
उलटने, छलकने न देना
आंसू बनकर
पता है ना
तुम्हारे रंग छंद बनकर उतरेंगे कविताओं में
शब्द बन बुनेंगे कहानियां
उम्मीद फिर जन्म लेगी
मारेगी किलकारियां
खूब ख़ूबसूरत होगा कल
बस, संभालो अपने आपको
छोटी तुनकमिज़ाजी से कहीं बड़ा है प्यार
4 comments:
बहुत सुंदर...
छोटी तुनकमिज़ाजी से कहीं बड़ा है प्यार
--बहुत सही बात!! उम्दा रचना!
अच्छी कविता है,बधाई।
uttam
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