केमिस्ट को याद हो गया घर का पता
रफ्तार के साथ चलता है पंखा
तेजी से धड़क रहा दिल
बिजली के साथ दवा का बिल भी बढ़ा
सौभाग्य ऊपर फ्लैक्चुएट कर रहा
या फिर दुर्भाग्य जोर-जोर से दरवाजा खटखटाने लगा यानी
बुरी तरह बीमार हूं
या प्रेम में हूं
अब ये न कहना
प्रेम भी तो एक बीमारी ही है...
(मूलतः 5 मार्च, 2009 को लिखा)
5 comments:
वाह !!! बहुत सुन्दर प्रेम ।
अच्छे भाव !!
बहुत खूब. झमाझम लिख रहे हैं
... अंदाजे बयां और ...क्या कहना ,अदभुत हैं यह अंदाज़ .आपसे इतनी मन की बातें हो गयी लगा बरसो पुरानी पहचान हैं .साथ बना रहेगा .
चंदन, संगीता जी, विनीत बाबू और अपने संवेदनशील हरीश भाई...आप सबका आभार. आपने इतनी गंभीरता से पढ़ा और हौसला बढ़ाया.
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