1990 में सामने आए बैंड जुनून के कुछ साल पहले तक तीन करोड़ रिकॉड्र्स बिक चुके थे, ऎसे में कहना बेमानी होगा कि जुनून और सलमान बेहद मशहूर हैं, हर दिल अजीज हैं। कामयाबी, शोहरत, पैसा...दुनिया की हर खुशी से मालामाल सलमान ने अब दहशतगर्दी के खिलाफ लड़ाई लड़ने में सरगम का सहारा लिया है। दक्षिण एशिया में यू2 नाम से मशहूर सलमान जानते हैं—नौजवान उनके संगीत के मुरीद हैं। वो कहते हैं, आतंकवाद के पहरेदार युवाओं को धर्म के नाम पर भड़काकर अपने साथ ले लेते हैं। जब दहशतगर्द ऎसा कर सकते हैं, तो मैं क्यों नहीं? आखिरकार, संगीत में लोगों को साथ करने की ताकत है। वैसे भी, मेरा लक्ष्य खूबसूरत है, मैं अमन का पैरोकार हूं और मुझे उम्मीद है कि युवा पीढ़ी मेरा साथ देगी।" सलमान की आत्मकथा है—रॉक एंड रोल जिहाद। वो जिहाद की सुंदर परिभाषा देते हैं—जिहाद, यानी बेहतरी, और सवाल भी उठाते हैं, हम अपनी भाषा और संस्कृति को दहशतगर्दो के हाथों अगवा क्यों होने दें? पेशे से डॉक्टर सलमान अब भी लोगों के घावों पर मरहम लगाने का काम कर रहे हैं, बस तरीका बदल गया है। ये घाव हैं मन के और मरहम है सरगम का। पाकिस्तान के राष्ट्रपति जिया उल हक के समय वहां गाने-बजाने पर पाबंदी लगा दी गई थी, लेकिन चंद हौसलामंद नौजवानों ने एक टैलेंट हंट का आयोजन किया। सलमान भी वहां पहुंचे। वो जैसे ही मंच पर पहुंचे, कुछ लोगों ने उनका गिटार तोड़ दिया। उन्हें धमकी दी गई—दोबारा गिटार थामा भी, तो जान ले लेंगे। खैर, मौसिकी के दीवानों को कौन डरा सकता है, सो सलमान ने फिर गिटार उठाया और उठाया ही नहीं बल्कि अपने सुर और साज के जरिए दुनिया भर में छा गए। यूं वो पाकिस्तान में नहीं रहते, सलमान ने अमेरिका में ही आशियाना बना लिया है। ऎसा होना लाजिमी भी है, क्योंकि जब सियासी करप्शन के बारे में उन्होंने एक गीत लिखा, तो पाकिस्तान में सलमान और जुनून दोनों पर पाबंदी लगा दी गई। सलमान नहीं मानते कि इस्लाम को मानने वाले कट्टर हैं। वो कहते हैं, सारे संसार में डेढ़ अरब से ज्यादा मुसलमान संगीत, कविता, हास्य और नृत्य को पसंद करते हैं...अगर वो इतने कट्टर होते, तो जुनून के तीन करोड़ रिकॉड्र्स कैसे बिकते? आतंकवाद ही नहीं, एचआईवी और एड्स को लेकर भी उन्होंने जागरूकता फैलाई है। वो संयुक्त राष्ट्रसंघ के गुडविल एंबेसडर रहे, बीबीसी के साथ दो डॉक्यूमेंट्री भी बनाई। वे चाहते हैं कि भारत-पाकिस्तान के बीच नफरत ना फैले। उन्होंने दोनों पड़ोसी देशों के बीच संबंध सुधारने की मुहिम में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया है। यूं तो, सलमान ने के साथ म्यूजिक करिअर शुरू किया था, लेकिन डेब्यू एलबम के बाद ही वो इससे अलग हो गए। 1990 में अली अजमत के साथ जुनून की स्थापना करने के बाद फिर पीछे मुड़कर नहीं देखा। अक्टूबर, 2005 में पाकिस्तान में भूकंप आया...नेताओं-फनकारों ने हाय-तौबा की, शोक जताया, लेकिन सलमान उनमें से एक थे, जिन्होंने घर-घर जाकर भूकंप पीडितों की तकलीफदूर करने के लिए झोली फैलाई। ऎसी कामयाबी यूं ही नहीं मिलती। सोचिए, दहशतगर्दो से डरकर अगर ये डॉक्टर फिर गिटार ना पकड़ता, तो सरगम की ऎसी मिठास से हम महरूम ना रह जाते? सलमान गाते रहना...तुम्हारा संगीत है, तो दहशतगर्दो की हिम्मत जवाब दे जाती है...तुम ना होते, तो हममें आतंक से युद्ध का जज्बा कैसे बना रहता? जयपुर के हिंदी अख़बार डेली न्यूज़ की रविवारीय परिशिष्ट हमलोग http://www.dailynewsnetwork.in/print/11118.html में प्रकाशित आलेख |
कौन-सी थी वो ज़ुबान / जो तुम्हारे कंधे उचकाते ही / बन जाती थी / मेरी भाषा / अब क्यों नहीं खुलती / होंठों की सिलाई / कितने ही रटे गए ग्रंथ / नहीं उचार पाते / सिर्फ तीन शब्द
मुसाफ़िर...
Tuesday, June 1, 2010
`दहशत में दम नहीं, जो ठहरे सरगम के आगे'
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2 comments:
bahut badhiya.
संगीत को कोई नहीं रोक सकता...ना समाज द्वारा बनाई गई दीवारें....और ना ही दूसरी बाधाएं चाहे वो प्राकृतिक हों या अप्राकृतिक...वाकई बहुत ही दमदार होता है संगीत...और संगीत सिर्फ बहादुर ही नहीं होता बल्कि हमारे अंदर बहादुरी का जज्बा भी भरता है....यानी संगीत एक हथियार है....जो विनाश नहीं करता बल्कि निर्माण करता है एक सुन्दर और सुरम्य वातावरण का...एक खूबसूरत संसार को जोड़ने और बनाने का काम करता है...इस सरगम को कोई भी ताकत रोक नहीं सकता....
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