एक पुराना सेटायर...
आबिदा परवीन की गाई एक गजल का शेर आज याद आ रहा है, 'मिलना चाहा तो किए तुमने बहाने क्या-क्या, अब किसी रोज न मिलने के बहाने आओ..। यकीन मानिए, बहानों का बहुत महत्व है। पीने वाले तो बहाने बनाने में महारत रखते हैं। पहले 'आज गम गलत करना है, इसलिए पी ली' कहते हैं फिर 'गम नहीं है, खुश हूं इसलिए पी ली' बताते हैं। खैर, आज बात करनी है छुट्टियों की खातिर बहाने बनाने वालों की, इसलिए गुफ्तगू का रुख थोड़ा मोड़ लेते हैं।
भगवान न करे, कोई कभी बीमार हो पर खब्ती दिमाग का क्या करें, जो काम न करने के बहाने तलाशता रहता है और इसमें सबसे सॉलिड बहाना बनती है बीमारी। इससे पक्का जुगाड़ शायद ही कोई और हो। ये दीगर बात है कि बीमारी कोई बहाना होती नहीं। काम करने वाले छोटी-मोटी नजला-जुकाम जैसी बीमारी से नहीं घबराते। नोट करें : इस सूची में निखट्टू शामिल नहीं हैं। खैर, बीमारी के बहाने छुट्टी लेने की वजहें भी गजब-गजब की हैं। कोई एक दिन की 'सीएल' लेने की वजह बताता है, बुखार आ गया था। कोई कहता है, पत्नी को ट्रेन पर बिठाना था, तो कहीं और नया बहाना गढ़ लिया जाता है।
बीमारी के बहाने ली गई छुट्टियों की वजह दरअसल, बीमारी ही नहीं होती, और कुछ भले हो। कई तो नई फिल्म का पहला शो देखने पहुंच जाते हैं, तो कुछ नई नौकरी के लिए टेस्ट देने। वैसे, अगर टेस्ट या इंटरव्यू में शामिल होने दफ्तर का ही कोई दूसरा आदमी आ जाए, या मल्टीप्लेक्स के सामने मिल जाए तो सारे ख्वाब धरे के धरे रह जाते हैं। हालांकि ऐसे में दोनों मिलकर कोई नया बहाना तलाशते हैं, या फिर छुट्टी के आवेदन में एक जैसा कारण लिखते हैं।
खैर, 'सिक लीव' का फंडा अब ज्यादा दिन नहीं चलने वाला क्योंकि यह बात छुपी नहीं है कि 'सिक लीव' का सिकनेस से कोई वास्ता नहीं रह गया है। ये तो बॉसेज का रहम है कि वे सिक लीव को लेकर कोई पॉलिसी नहीं बना रहे। शायद इसलिए कि जो आज बॉस हैं, कभी वे इंप्लाई रहे होंगे और उन्होंने भी सिक लीव ली होगी। ऐसा न होता, तो सिक लीव का बहाना फ्यूज हो गया होता। जरा सोचिए, अक्सर ली जाने वाली छुट्टियों के बारे में कोई पॉलिसी बन जाए, तो उसका फॉर्मेट क्या होगा? एक वेबसाइट से उड़ाया गया प्रारूप आप भी देख सकते हैं :
पर्मानेंट रोगियों
बीमार होना बंद कीजिए। अब आपके दोस्त कम डॉक्टर का फर्जी बीमारी सर्टिफिकेट स्वीकार नहीं किया जाएगा। कंपनी समझ सकती है कि आप बीमारी की हालत में घर से दूर एक डॉक्टर के क्लीनिक तक जाकर लंबी लाइन लगाकर अपना चेकअप करा सकते हैं, तो दफ्तर ऑकर ड्यूटी भी कर सकते हैं।
ऑपरेशन भी बहाना है, बस काम पे आना है
हम हर चार माह में एक नए रोग के नाम पर ऑपरेशन कराने की अनुमति नहीं दे सकते। वैसे भी, कोई बीमारी है तो उसे टालते रहिए। काम में मन लगाएंगे, तो ऑपरेशन की नौबत नहीं आएगी। हम नहीं चाहते कि आप ऑपरेशन कराएं और कंपनी एक जिम्मेदार कर्मचारी को खो दे, या फिर आप काम पर लौटें तो आधे-अधूरे!
जो गया, उसे भूल जा
प्रभु क्षमा करें, कुछ लोग अक्सर किसी नजदीकी रिश्तेदार की मृत्यु होने की बात कहकर छुट्टïी ले लेते हैं। उनसे हम कहना चाहेंगे, 'काम से राहत पाने का ये बहाना ठीक नहीं। ये एक ऐसी स्थिति है, जिसमें आप कुछ भी नहीं कर सकते। न कुछ जोड़ सकते हैं, न घटा पाना आपके बस की बात है, इसलिए जो गया, उसे भूल जाएं। अगर अंतिम संस्कार में जाना है, तो लंच के समय जाएं और ज्यादा से ज्यादा एक घंटे विलंब से द तर वापस आ जाएं।'
ईश्वर न करे, अगर आप खुद ही...
अगर आपको लगता है कि कुछ दिन में आप खुद हमें छोड़कर दूसरे संसार की यात्रा पर जा सकते हैं, तो कम से कम दो सप्ताह पहले सूचित कर दें, ताकि हम वैकल्पिक व्यवस्था कर सकें।
ताजा हो ले
हमें पता चला है कि कुछ लोग दिन में पांच-छह बार कैंटीन चाय पीने के लिए निकल लेते हैं। वे कृपया ध्यान दें : कृपया नए नियम के अनुसार ही चाय पीने निकलें। मसलन-चाय का समय होगा सुबह 9.30 से 9.35। दफ्तर आने से ठीक 25 मिनट पहले। इसी तरह सभी लोग अपनी शिफ्ट पर पहुंचने से 10 मिनट पहले ही चाय पीकर तरोताजा हो लें।
खैर, ये तो हंसी की बात थी। यकीन मानिए, तरक्की का तरीका बस काम है और कुछ भी नहीं, इसलिए बीमार होना छोडि़ए और काम पर जुट जाइए। चर्चित संस्कृतिकर्मी और टेलीफिल्म 'नींद आने तक' के निर्देशक विनय प्रकाश सिंह कहते हैं, 'कॉरपोरेट जगत में बहानेबाजी का कोई स्थान नहीं, क्योंकि समय पर और निष्ठा के साथ किया गया काम ही आपको ऊंचाई तक ले जाता है, इसलिए बीमारी के बहाने बनाना छोड़कर काम करने का बहाना तलाशना चाहिए।'
दैनिक जागरण की गृह पत्रिका टीम जागरण में प्रकाशित
9 comments:
कर्म ही पूजा है...बढ़िया आलेख.
shandar, no doubt...
यकीन मानिए, तरक्की का तरीका बस काम है और कुछ भी नहीं
-यही दीर्घकालिक उपाय है.
प्रस्तुतिकरण के लिए बहुत बहुत धन्यवाद
सटायर भले ही पुराना हो मगर महक बरकरार है!
बढिया है. अब प्रायवेट कम्पनियां इस तरह के बहाने बनाने कहां देतीं हैं? निचोड़ के काम करवा रही हैं हमारे बहानेबाज़ों से :)
बहुत बढिया शुभकामनायें
शायद मिर्ज़ा ग़ालिब ने कहा था:
खुदा करे इन हसीनों के बाप मर जाएँ
बहाना मौत का हो और हम इनके घर आयें
chandi bhai bahut badiya likhte ho ,congrt and thanx
Post a Comment