जब तक कायम रहे सांवली त्वचा की पृथ्वी, तुम आना बार-बार, ताकि उपज सकें अंकुर
आना, जिससे तपते-नाराज़ सूरज की नज़र बन जाए गुलाबी, हो शीतल
गाना, ताकि संग-संग गुनगुना उठे बचपन
लहराना आंचल, गर्म हवाओं के बीच गुलाबी हो जाए वसंत का मौसम...
तुम जन्म लेना बार-बार, ताकि कवि लिखें कविताएं और गूंजें उनमें छंद..
तुम लौटना हर बार, ताकि जीवन जी सके खुद को जीवंतता के साथ...
बिछोह के ज्वार में फेनिल सागर बने निर्मल, रहे रूमानी...
2 comments:
हां...जन्म लूंगी ज़रूर
इतनी खूबसूरत रचना को मेरा मन चाहता है पढना बार बार...
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