कौन-सी थी वो ज़ुबान / जो तुम्हारे कंधे उचकाते ही / बन जाती थी / मेरी भाषा / अब क्यों नहीं खुलती / होंठों की सिलाई / कितने ही रटे गए ग्रंथ / नहीं उचार पाते / सिर्फ तीन शब्द

मुसाफ़िर...

Wednesday, August 25, 2010

राखी



राखी की शुभकामनाएं

वो छुटपन के झगड़े / वो गुड़िया के कपड़े /
वो तुम्हारा रूठना इक चवन्नी के लिए / 
वो मेरी शरारत पर पिटना तुम्हारा / 
वो पापा की डांट से मुझको बचाना...
तुम्हारे प्यार का क्या-कैसे मोल चुकाऊंगा मैं बहना...
राखी मुबारक.



1 comment:

rashmi ravija said...

प्यारी सी कविता...:)