कौन-सी थी वो ज़ुबान / जो तुम्हारे कंधे उचकाते ही / बन जाती थी / मेरी भाषा / अब क्यों नहीं खुलती / होंठों की सिलाई / कितने ही रटे गए ग्रंथ / नहीं उचार पाते / सिर्फ तीन शब्द

मुसाफ़िर...

Friday, December 31, 2010

मैं बेचारा, महंगाई का मारा

मैं हूं आम आदमी... सरकार का मारा...मेरी आवाज़ सुनो... दर्द का राज सुनो... फ़रियाद सुनो। मनमोहन सिंह जी, आप तो सुनो... कुछ जवाब दो। जी हां, मैं इसी मुल्क का बाशिंदा हूं, जहां मुकेश और अनिल अंबानी रहते हैं। पहले मुकेश ने तारों से बातें करने वाला दुनिया का सबसे महंगा घर ' एंटिला' 4500 करोड़ खर्च करके बनाया और अब अनिल बड़े भाई से बड़ा घर बनवा रहे हैं। मेरा नाम तो आपको पता नहीं है, हां, वो घर जब बनकर तैयार होगा, तो उसका नाम ज़रूर जानेंगे। और क्या पूछा आपने, मैं कहां रहता हूं? अरे साहब, छोटे-छोटे कमरों में, कहीं झुग्गियों में, तो कभी पाइप लाइन में...क्यों? क्योंकि मैं आम आदमी हूं। अनिल अंबानी का घर 150 मीटर ऊंचा होगा और मेरा...? सच कहूं—मैंने बड़े ख्वाब देखने छोड़ दिए हैं। घर का ख्वाब बड़े सपनों में ही शामिल है। सुना है, एचडीएफसी और आईसीआईसीआई बैंकों ने फिर से ब्याज दर बढ़ा दी है। एक ने 0.75 फीसदी का इजाफा किया, तो दूसरे बैंक ने 0.50 प्रतिशत दर बढ़ा दी। यही वज़ह है कि होम लोन महंगा हो गया है। अब जिन लोगों ने फ्लोटिंग रेट पर होम लोन लिया होगा, उनकी हालत पूछिए...। पसीना छूट रहा है। यही वज़ह है कि मैं अपना घर जैसी सोच को सपनों में भी नहीं आने देता।
घर की तो दूर, सुबह चाय पीने की सोचना भी भारी लगता है। आप तो जानते ही होंगे— मदर डेयरी का दूध फिर महंगा हो गया है। तैंतीस रुपए खर्च करके कौन दूध खरीदेगा चाय पीने के लिए? मेरी तो हिम्मत नहीं पड़ती। कहीं फिर से वही दिन तो नहीं लौटने वाले, जब मां आटे में पानी घोलकर रखेगी और कहेगी—बेटे, पी लो, दूध है। दूध उत्पादक कहते हैं—लागत बढ़ी है। पशुपालकों का शिकवा है—खर्चे बढ़े हैं। हम क्या कहें, किससे कहें, कोई हमें बता दे।
कल की ही बात  है, बच्चे ज़िद कर रहे थे कि गाड़ी से चलेंगे। वो भी यहां-वहां नहीं, डायरेक्ट शिमला। अब इन्हें कौन समझाए—टैक्सियों में सफर करना इतना महंगा हो चुका है कि साल भर की बचत कर लो, तो अपनी गाड़ी, कम से कम नैनो का तो ख्वाब देख ही सकते हैं।
पेट्रोल के दाम तीन रुपए बढ़े, ऐसे में टैक्सी यूनियनें भी किराया बढ़ाने की मांग कर रही हैं। उन्हें ही गैरवाज़िब कैसे ठहराएं? सोल्यूशन क्या है—जो मिले खाएं और मुंह ढककर सो जाएं। किसी शायर ने भी तो कहा है—आराम बड़ी चीज है, मुंह ढक के सोइए।
वैसे, कार भी कुछ दिन में ख्वाबों में शामिल करने वाली चीज ही होने वाली है। नैनो ने भले थोड़ी राहत दी थी, लेकिन नई खबर पता है आपको? वो यह है—मारुति सुजुकी इंडिया और हुंडई कारों के दाम बढ़ा रही हैं। बोले तो, बैलगाड़ी ज़िंदाबाद।
दिल्ली की बसों में जेब कट जाती है, तो पंजाब  में बस से चलने की सोच ही नहीं सकते। हाल में ही सुखबीर साहब की सरकार ने पंजाबी जूती से वैट घटा दिया है और बसों का किराया महंगा कर दिया है, यानी 10 पैसे प्रति किलोमीटर के हिसाब से।
खैर, मैं एक कन्फेशन कर लूं। भटक गया था, कॉमन मैन हूं ना। गाड़ियों, बसों की बात करने लगा था। यहां तो दिक्कत दो जून रोटी की है ज़नाब। खबर आई है कि एलपीजी भी सौ रुपए तक महंगी हो सकती है। तेल मंत्रालय के आकाओं से गुहार लगानी पड़ेगी। उनके आंकड़े भी अजब-गजब हैं। पूर्वी एशिया में एलपीजी का सबसे ज्यादा इस्तेमाल हम ही करते हैं और इसके लिए हर साल 30 लाख टन कुकिंग गैस आयात की जाती है।
सो... हम आंकड़े नहीं समझते मंत्रीजी। रहम करें, ताकि अगस्त के बाद से कुकिंग गैस की कीमतों में हर सिलिंडर पर पचास से सौ रुपए का इजाफा ना हो। माना कि एक साल में अंतरराष्ट्रीय कीमतों में दो तिहाई की तेजी आ चुकी है। अमीर मुल्क तो झेल लेंगे साहब, हमारा क्या होगा। सुन रहे हैं ना मनमोहन जी?
बहुत डर लगता है ये सुनकर भी कि 2011 में वैश्विक खाद्य संकट हो सकता है। एफएओ ने चेतावनी दी है कि 2011 में दुनिया वैश्विक खाद्य संकट से जूझ रही होगी। हमारी भूख का हल क्या होगा पीएम साहब?
भूखे पेट बच्चे भी भला कैसे स्कूल जाएंगे, उस पर भी पता चला है कि स्कूलों की फ़ीस बढ़ने वाली है! प्राइवेट स्कूल बसों की फीस में इजाफा हो रहा है। एमपी के निजी स्कूल दस से पंद्रह फीसदी तक फीस बढ़ाने वाले हैं। विडंबना भी जान लीजिए, फीस बढ़ाने वालों में ज्यादातर सीबीएसई से एफिलेटेड हैं। और एमपी ही क्यों, दिल्ली में भी ऐसा होने वाला है... पर स्कूल वाले इसे मज़बूरी में लिया गया फ़ैसला बता रहे हैं। वो कहते हैं—तीन साल में डीजल 43 रुपए प्रति लीटर तक बढ़ चुका है। स्कूल बसों का खर्च भी तो बढ़ रहा है, ऐसे में इसकी पूर्ति कैसे की जाएगी? सच कह रहे हैं प्रिंसिपल साहब, पर आम आदमी क्या करे? आप ही कुछ सुझाइए पीएम साहब।
हम लोग कौन  हैं...छोटी-मोटी फैक्टरियों में काम करते हैं, दफ्तरों में वर्कर हैं या फिर दुकानें चलाते हैं। कहां से लाएं पैसे, कैसे करें महंगाई का मुकाबला?
खबरें खूब हैं, सब की सब डराती हैं। एक खबर ये भी है कि रिजर्व बैंक की मौद्रिक नीति सख्त हो सकती है। ऐसा हुआ, तब तो छोटे और मझोले उद्योगों की हालत और खस्ता हो जाएगी। विदेश से सप्लाई के लिए मांग कम हो गई थी। अब वो सुधरी है, तो डॉलर कमज़ोर हो रहा है। एक तो नीम, दूसरे करैला चढ़ा। बैंक भी ब्याज दरें बढ़ा रहे हैं। कर्ज महंगा हो जाएगा, बाजार में रकम कम हो रही है, ऐसे में छोटे-मोटे उद्योग क्या करेंगे?
पंजाब नेशनल बैंक पहले नए ग्राहकों के लिए अपनी आधार दर आधा फीसदी बढ़ाकर नौ फीसदी कर चुका है। उसके ज़रिए मिलने वाले सभी कर्ज महंगे हो गए हैं। पेट्रोल भी लगातार महंगा होता जा रहा है।
केंद्र सरकार पेट्रोल की कीमतों से नियंत्रण हटा चुकी है। कारोबारी मनमानी कर रहे हैं। कीमतें लगातार बढ़ रही हैं। पिछले साल जून में नियंत्रण हटाया गया था। तब से पेट्रोल 17-18 फीसदी महंगा हो चुका है। तेल कंपनियां कच्चे तेल की कीमतों और उत्पादक लागत को आधार बनाकर इसकी कीमत तय करने के लिए आज़ाद हो गई हैं। ऐसे में लगातार कीमतें बढ़ती जाएंगी। सुन रहे हैं मंत्री जी? क्या इसीलिए, आपने नियंत्रण हटाया था, ताकि मनमानापन शुरू हो जाए?
माना कि पेट्रोल के कारोबारी घाटे को कम करने के लिए ऐसा कर रहे हैं, लेकिन आप तो पेट्रोल पर लगाए जाने वाले टैक्स में कमी ला सकते हैं। सुना है, डीजल भी महंगा करने की तैयारी हो रही है। खैर, पेट्रोल की बात ही क्या करें। जयपुर में तो कर्नाटक मॉडल पर पानी के रेट बढ़ाने की तैयारी हो रही है।
तो... सब्जियां महंगी, दूध महंगा, टमाटर महंगा, प्याज महंगा, लहसुन महंगा, अब इस महंगाई की मार से घर का, ज़िंदगी का कौन-सा कोना अछूता बचा है? सरकार को कोई सुध नहीं है। आम आदमी चाहे हड़ताल करे या आंदोलन। मैं बेचारा सचमुच हूं... सरकार का मारा।
और महंगे हो सकते हैं
* पेट्रोल-डीजल, दूध, बिजली, परिवहन, सब्जियां, दालें।
* डीजल की कीमतों में दो रुपए प्रति लीटर की वृद्धि का प्रस्ताव विचाराधीन।
लेखक चंडीदत्‍त शुक्‍ल स्‍वाभिमान टाइम्‍स के समाचार संपादक हैं. इनकी साहित्‍य में भी रूच‍ि है



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