कौन-सी थी वो ज़ुबान / जो तुम्हारे कंधे उचकाते ही / बन जाती थी / मेरी भाषा / अब क्यों नहीं खुलती / होंठों की सिलाई / कितने ही रटे गए ग्रंथ / नहीं उचार पाते / सिर्फ तीन शब्द

मुसाफ़िर...

Sunday, July 26, 2009

गैरेज से शिखर तक


15देश, 100 से ज्यादा कार्यालय, 30 हजार से ज्यादा कर्मचारी-अधिकारी और दुनिया भर के कंप्यूटर व्यवसायियों, उपभोक्ताओं का विश्वास..शिव नाडार अगर सबकी अपेक्षाओं पर खरे उतरते हैं, तो इसके केंद्र में उनकी मेहनत, योजना और सूझबूझ ही है।
अगस्त 1976 में एक गैरेज में उन्होंने एचसीएल इंटरप्राइजेज की स्थापना की, तो 1991 में वे एचसीएल टेक्नोलॉजी के साथ बाजार में एक नए रूप में हाजिर हुए। पिछले तीन दशक में भारत में तकनीकी कंपनियों की बाढ़-सी आ गई है, लेकिन एचसीएल को उत्कर्ष तक ले जाने के पीछे शिव नाडार का नेतृत्व ही प्रमुख है। नाडार की कंपनी में बड़े पद तक पहुंचना भी आसान नहीं होता। शिव ने एक बार कहा था, मैं नेतृत्व के अवसर नहीं देता, बल्कि उन लोगों पर निगाह रखता हूं, जो कमान संभाल सकते हैं। एचसीएल में उन्होंने इसका व्यावहारिक परीक्षण भी किया है। उनके कई कर्मचारी एक के बाद एक जिम्मेदारियां सं 60 साल का होने के बावजूद वे युवाओं से भी तेज गति के साथ काम करते हैं। आइए मिलते हैं 16 हजार, 625 करोड़ की कंपनी हिंदुस्तान कंप्यूटर्स लिमिटेड (एचसीएल) के सीईओ और चिर युवा शिव नाडार से..
ंभालते हुए जब सफल साबित हुए, तो शिव ने उन्हें बड़े पद देने में कभी हिचक नहीं दिखाई। एचसीएल की विभिन्न शाखाओं, मसलन-इन्फोसिस्टम्स, फ्रंटलाइन सॉल्यूशंस, कॉमेट और एचसीएल अमेरिका के लिए उच्चाधिकारी चुनने में नाडार ने इसी रणनीति का इस्तेमाल किया है। कुछ साल पहले फो‌र्ब्स की सूची में शामिल धनी भारतीयों में से एक, नाडार 1968 तक तमिलनाडु की डीसीएम कंपनी में काम करते थे। उन्होंने अपने साथ के छह लोगों को प्रेरणा दी, क्यों न एक कंपनी खोली जाए, जो ऑफिस इक्विपमेंट्स बनाए। फलत: 1976 में एचसीएल की नींव पड़ी। 1982 में जब आईबीएम ने एचसीएल को कंप्यूटर मुहैया कराना बंद कर दिया, तब नाडार और उनके साथियों ने पहला कंप्यूटर भी बना लिया। फिलहाल, हालत यह है कि एचसीएल की 80 फीसदी आमदनी कंप्यूटर और ऑफिस इक्विपमेंट्स से ही होती है। फरवरी 1987 में चर्चित पत्रिका टाइम ने लिखा था, पूरी दुनिया नाडार की सोच और भविष्य के लिए तैयार किए गए नेटवर्क को देखकर आश्चर्यचकित और मुग्ध है। दरअसल, नाडार का साम्राज्य अर्थशास्त्र और शासन को नई परिभाषा देने वाला है। वैसे, तकरीबन तीन दशक पहले जब नाडार ने कंपनी स्थापित की थी, तो यह एक दांव की तरह ही था। तमिलनाडु में पहले नौकरी छोड़ना और बाद में दिल्ली में क्लॉथ मिल की जमी-जमाई जॉब को भी ठोकर मार देना..ऐसा साहस नाडार ही कर सकते थे, लेकिन वे न सिर्फ कामयाब हुए, बल्कि उन्होंने साथियों और निवेशकों का भरोसा भी जीता। मधुरभाषी नाडार बताते हैं, पिछले तीन-चार दशक में मैंने देखा है कि आईटी इंडस्ट्री का काफी विकास हुआ है। खासकर, हार्डवेयर, सॉफ्टवेयर, सर्विसेज, सॉल्यूशंस, नेटवर्किग, कम्युनिकेशन, इंटरनेट और आईटी इन्फ्रॉस्ट्रक्चर की दिशा में काफी संभावनाएं बढ़ी हैं। मैंने समय रहते अवसर पहचान लिया और इसीलिए कामयाब भी हुआ।
उनकी सोच का लोहा माइक्रोसॉफ्ट के संस्थापक बिल गेट्स भी मानते हैं, तभी तो 1996 में जब वे भारत आए, तब उन्होंने कंप्यूटर की दुनिया से जुड़े लोगों में सबसे पहले शिव नाडार से मुलाकात की। नाडार के जीवन में एक और बात राहत देने वाली है..वे कारोबार में कितने ही व्यस्त क्यों न हों, पत्नी किरण और बेटी रोशनी के लिए वक्त निकालना कभी नहीं भूलते।
इन दिनों यूएस बेस्ड एनआरआई बन चुके नाडार ने बेहतर योजना, अनुशासन और टीमवर्क की बदौलत जो सफलता हासिल की है, वह चौंकाती तो है, उस राह पर बढ़ने की प्रेरणा भी देती है।


दैनिक जागरण के जोश सप्लिमेंट में प्रकाशित

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