मेरी गुड़िया रूठ गई है...
राह में मुझसे छूट गई है...
हाथ से गिरकर टूट गई है...
मम्मा मेरी गुड़िया ला दो...
मम्मा मुझको गुड़िया दे दो...
उससे मिलकर मैं हंसता था...
सारा दिन मैं खुश रहता था...
रात को पास में रहती थी वो...
दिल की बातें कहती थी वो...
दोनों मिलकर खाना खाते...
हम तो मैगी चाय बनाते...
खूब झगड़ते-खूब थे लड़ते...
फिर भी कितना प्यार हम करते...
मुझसे नहीं है बातें करती...
जब देखो, तब दूर ही रहती...
मम्मा उसकी चुगली करता...
मैं तो उसे बहुत बुलाता...
पहले उसको मिट्ठी कर दो...
तुम तो उसकी चुम्मी ले लो...
ना माने तो पिट्टी कर दो...
मेरी शिकायत झूठ कही है...
मेरी गुड़िया रूठ गई है...
उससे कहना घर पे आए...
बर्थडे पर वो केक खिलाए...
मेरे संग-संग गाना गाए...
लाइफ मुझको गिफ्ट दे गई है...
मेरी गुड़िया रूठ गई है...
राह में मुझसे छूट गई है...
सड़क पे देखो पानी जमा है...
उसमें नाव चलाने का मन है...
छपाक छइया करने का...
और पकौड़ी खाने का मन है...
देर रात को घर से निकल के...
सड़क के बीचो-बीच बैठके....
रोड हमारे बाप की है...
ये तो चिल्लाने का मन है...
उससे बोलो...आ जाए वो...
मुझको ना और सताए अब वो..
कैसे कहूं मैं, किससे कहूं मैं...
मेरी गुड़िया रूठ गई है...
राह में मुझसे छूट गई है...
राह में मुझसे छूट गई है...
हाथ से गिरकर टूट गई है...
मम्मा मेरी गुड़िया ला दो...
मम्मा मुझको गुड़िया दे दो...
उससे मिलकर मैं हंसता था...
सारा दिन मैं खुश रहता था...
रात को पास में रहती थी वो...
दिल की बातें कहती थी वो...
दोनों मिलकर खाना खाते...
हम तो मैगी चाय बनाते...
खूब झगड़ते-खूब थे लड़ते...
फिर भी कितना प्यार हम करते...
मुझसे नहीं है बातें करती...
जब देखो, तब दूर ही रहती...
मम्मा उसकी चुगली करता...
मैं तो उसे बहुत बुलाता...
पहले उसको मिट्ठी कर दो...
तुम तो उसकी चुम्मी ले लो...
ना माने तो पिट्टी कर दो...
मेरी शिकायत झूठ कही है...
मेरी गुड़िया रूठ गई है...
उससे कहना घर पे आए...
बर्थडे पर वो केक खिलाए...
मेरे संग-संग गाना गाए...
लाइफ मुझको गिफ्ट दे गई है...
मेरी गुड़िया रूठ गई है...
राह में मुझसे छूट गई है...
सड़क पे देखो पानी जमा है...
उसमें नाव चलाने का मन है...
छपाक छइया करने का...
और पकौड़ी खाने का मन है...
देर रात को घर से निकल के...
सड़क के बीचो-बीच बैठके....
रोड हमारे बाप की है...
ये तो चिल्लाने का मन है...
उससे बोलो...आ जाए वो...
मुझको ना और सताए अब वो..
कैसे कहूं मैं, किससे कहूं मैं...
मेरी गुड़िया रूठ गई है...
राह में मुझसे छूट गई है...
7 comments:
नि:संदेह बेहतरीन।
एक बालगीत।
भाई बहुत उम्दा है.. बचपन याद दिला दिया..इसे किसी बच्चों की पत्रिका में भेजिए.. बहुत ही बढ़िया है।
बहुत सुन्दर रचना ...
बहुत ही सुंदर और सरल कविता है। लेकिन कविता के भाव को पढ़कर ऐसा लगता है कि ये किसी गुड़िया की नहीं बल्कि वयस्क से जुड़ी भावनाओं की अभिव्यक्ति है।
इस सुन्दर बाल कविता के लिए बधाई!
bahut sunder rachna.......sadhuwad...
Sir....ji...kavita to achhi likhi hai. Iske liye aap badhaai ke paatra hai.
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