दैनिक जागरण में छह साल बिताए...उस दौरान वहां बहुत कुछ लिखा पढ़ा--कुछ रोजी की ज़रूरत, कुछ मन की मजबूरी......लिखा, तो उसमें में ज़रा सा संजोया भी....बहुत कुछ तो पता नहीं कहां चला गया....हां, jagran.com पर कुछ सामग्री छप गई थी, उसमें दो-चार हिस्से आ गई. वो सबकुछ मेरे पुराने ब्लॉग पर सेव थी. आज वही सामग्री चौराहा www.chauraha1.blogspot.com पर सेव की है....संदर्भ, आंकड़े सबकुछ पुराने हैं....पर ये मसाला मेरे एक खास स्तंभ बेबाक बातचीत और सखी पत्रिका के कुछ स्तंभों में शामिल किया गया था. चौराहे पर इस तरह की सामग्री शायद आपको चौंकाए भी....देखिए ना...महापुरुषों से लेकर कंज्यूमर फ़ोरम तक और चैटिंग से चीटिंग के मामले से भोजपुरी गीतों की चर्चा तक है यहां....जो बचा-खुचा बचा रह गया, उसे यहां संजो रहा हूं....रोजी जो ना कराए वो थोड़ा है....क्या लिखने के बारे में सोचा था ज़िंदगी में और क्या-क्या लिख डाला....ख़ैर...कुछ कमेंटियाइए....कुछ कहिए, या धिक्कारिए भी....चलेगा...सबकुछ चलेगा....
3 comments:
badhai ho bhai blog k liye painting bahut khoobsurat hai
लिखिये ! पढ़ा जायेगा।
good
Post a Comment