मैंने दीं अश्कों से नम शामें / तुमने खिलखिलाहटों से भरी सुबहें / मैं काला हुआ, चीखता ही रहा / तुम गुलाबी रहीं, कभी ना मद्धम हुईं / नादां था, हरदम भटकता रहा / अब जो तुम...नासाज़ हो---नाराज़ हो / पछता रहा हूं/ यकीन मानो / छीजता ही जा रहा हूं.../ ढीठ हूं, सो चाहता हूं / मेरी पलकों में सिमटे आंसू पी लो / होंठों से..../ और मैं / अपने सीने में घुटी मुस्कान / टांक दूं / तुम्हारे लबों पर..
कौन-सी थी वो ज़ुबान / जो तुम्हारे कंधे उचकाते ही / बन जाती थी / मेरी भाषा / अब क्यों नहीं खुलती / होंठों की सिलाई / कितने ही रटे गए ग्रंथ / नहीं उचार पाते / सिर्फ तीन शब्द
मुसाफ़िर...
Tuesday, January 19, 2010
तेरे लब कहां हैं, ओढ़ ले मेरी मुस्कान
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19 comments:
Gahara Kashmaksh hai in shabdon me...behatereen!!
अच्च्चे शब्दों का साँचे कर ये पंक्तियाँ बुनी हैं आपने
God is just!
har naarazgi or gumgeen raat ke baad pyaar ki subah aati hai!!!
Aur sabse badi baat vishwaas hai ... khud per bhi aur khuda per bhi.
Shabdon ne jaadu bikher diya hai ...:)
गज़ब है भाई शब्दों के सामंजस्य से इतना उम्दा भाव उत्पन्न हुआ है कि मुग्ध हूं
अजय कुमार झा
मैंने दीं अश्कों से नम शामें / तुमने खिलखिलाहटों से भरी सुबहें / मैं काला हुआ, चीखता ही रहा / तुम गुलाबी रहीं, कभी ना मद्धम हुईं ....
क्या बात है...बड़ी ईमानदारी से लिख गए इस बार तो...और बहुत खूबसूरती से भी...सुन्दर पंक्तियाँ..सच्चे अहसासों के लौ तले जगमगाती हुईं
chadi dutt ji manobhav shayad ek premi ke lagate hain. shabd aur shabd sanyojan aapka accha hai. aese hi likhte rahiye. baki ka jayada taareef kari jantae how gondahan ka.
बहुत खूबसूरत.
मैंने दीं अश्कों से नम शामें / तुमने खिलखिलाहटों से भरी सुबहें /
खूबसूरत ख्याल...अच्छी नज़्म....बधाई
Waah.....khoobsoorat....
wah wah or bas wah...
अद्भुत !!!!!
मैंने दीं अश्कों से नम शामें / तुमने खिलखिलाहटों से भरी सुबहें /
सच सुन्दर सही में लाजवाब है यह चंद पंक्तियाँ .शुक्रिया
yun laga jaise bhavnao ko shbd mile,aur uker diya jaye panno pe...
bahut khubsurat likha hai...
लाजवाब जी !!!!!!
bahut hi behtareen hai...dil ki baat apne to bina lab khole hi bool di...
बेमिसाल। पर चंडीदा इन शब्दों के पीछे प्रेरणा कहां से मिली। आखिर कौन है वो जो आपको खिलखिलाती सुबहें देता है/देती है।
वाह बहुत खूब शुभकामनायें
इस रचना की हेडिंग पढ़ के ही लगा प्यार और एहसासात किस कदर लबरेज है इस रचना में ... कमाल की बात की है आपने शुक्ला जी .....
बधाई
अर्श
रेशम की कतरन सी
आपकी कविता!!!
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