कुछ पंक्तियां...., जो बज़ पर आईं सीधे
बरसती थीं जब अथाह तुम / समेटे रहा अपनी अंजुरी मैं / तरसता हूं अब एक बूंद की छुअन को / मन पठार में कितनी प्यास समेटे...Edit
2 people liked this - अविनाश वाचस्पति and पवन कुमार
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बहुत दिन बाद हुई बारिश / लबालब हुए हम दोनों / फिर भीगे, मन भरकर / एक मैं था / और एक तुम्हारी याद....Edit
4 people liked this - Sheelu Ji, pratibha katiyar, शायर " अशोक " and पवन कुमार
Sheelu Ji - awesome sir ji, awesome....2:23 am
shikha varshney - oye hoye ..beautiful..2:48 am
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तेरी याद भी पाज़ी है / मुझे बहुत रुलाती है /
अंखियां भर आती हैं / हां नींद ना आती है...Edit
अंखियां भर आती हैं / हां नींद ना आती है...Edit
3 people liked this - Sheelu Ji, shikha varshney and पवन कुमार
प्रतिक्रियाओं के लिए धन्यवाद...वैसे, डिज़ाइन कॉपी करने का आइडिया कैसा रहा? |
2 comments:
बहुत बढ़िया!
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अच्छा लगा देखकर!
बरसती थीं जब अथाह तुम / समेटे रहा अपनी अंजुरी मैं / तरसता हूं अब एक बूंद की छुअन को / मन पठार में कितनी प्यास समेटे..
वाह बहुत अच्छी लगी सभी पँक्तियां मगर ये दिल को छू गयीं। आभार।
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