दर्द है / कितना? / कोई ना पूछे/ बयां करना मुश्किल है!
पर यक़ीन मानो / हम दोनों मुस्कराएं / यही इतना इसका हल है!!
है नफ़रत तुम्हें मेरे वज़ूद से / मैं डरता हूं अपनी खुदगर्जियों के सबूत से /
फिर भी मिलते हैं हम / ढूंढते हैं एक-दूसरे को / मान भी लो, यही हमारे संग का संबल है....
है नफ़रत तुम्हें मेरे वज़ूद से / मैं डरता हूं अपनी खुदगर्जियों के सबूत से /
फिर भी मिलते हैं हम / ढूंढते हैं एक-दूसरे को / मान भी लो, यही हमारे संग का संबल है....
5 comments:
इस संबल के लिये शुभकामनायें रचना अच्छी है
सही हल खोजा है जी!
बधाई!
bahut dard bhara hai iss rachna mein... Muskurana hal ho toh sakta hai per itni himmat hai kismein??
काश इस दर्द की दवा करे कोई... बहुत खूबसूरत
बहुत खूबसूरत
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